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तीर्थ-जिन विशेष
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नव चोमासी तप कर्या, त्रण मासी दोय,. दोय-दोय अढीमासी तिम,-दोढ मासी होय...१... बहोंतेर पासखमण कर्यां, मासखमण कर्यों बार, षड् द्विमासी तप वळी, बार अट्ठम तप सार...२... षड्मासी अक तप कर्यो, पंच दिन उणषड् मास, बसोओगणत्रीस छठ भला, दीक्षा दिन अक खास...३... भद्र प्रतिमा दोय भली, महाभद्रे दिन चार, दश दिन सर्वतोभद्रवा, लागठ निरधार...४... विण पाणी तप आदर्यो, पारणादिक जास, द्रव्याहारे पारणा कर्या, त्रणसो ओगणपचास...५... छद्मस्थ अणीपेरे रह्या, सह्या परिषह घोर, शुक्लध्यान अनले करी, बाळयां कर्म कठोर...६... शुक्लध्यान अंते रह्या, पाम्या केवलज्ञान, पद्मविजय कहे प्रणमतां, लहीले नित कल्याण...७...
जय जय श्री जिन वर्धमान, सोवन सम काय, सिंह लंछन सिद्धार्थराव, सुत त्रिशला माय...१... वरस बहोंत्तर आउ देह, कर सत्त प्रमाण, ऋषभादिक सम जास वंश, इक्ष्वाकु सम जाण...२... छट्ठ भत्त संजम लीयो, कुंडलग्राम शुभ ठाम, गणधरे अग्यारे सहित, आव्यो शिवपुर स्वाम...३... चौदह सहस मुनि शिष्य, छत्रीस सहस, श्रमणी श्रावक अक लाख, गुणसट्ठ सहस्स...४...
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