Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ : सन्देश - वन्दन
कोटि कोटि वन्दना रे...
णवे सर्वप्रिय थे......
ता. साथ- संत और सामान्य
राजा-महाराजा, नेता, साधु-संत और सामान्य, व्यक्ति सभी प्रकार के होते हैं । न तो सब राजा-महाराजा, न सब नेता, न सब साधु-संत और नहीं सब व्यक्ति सर्व लोकप्रिय होते हैं। कौआ और कोयल दोनों का रंग एक समान होता है, किन्तु कोयल अपनी मधुर वाणी के लिए सबको प्रिय होती है। केवल उच्च पद पर आसीन होने मात्र से व्यक्ति लोकप्रिय नहीं हो सकता। सबका प्रिय बनने के लिए व्यक्ति में सद्गुणों का होना अनिवार्य है। जब तक व्यक्ति अपने में सद्गुणों का विकास नहीं कर लेता तब तक वह सर्वप्रियता प्राप्त नहीं कर सकता। यदि इस संदर्भ में परम श्रद्धेय आचार्य श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के जीवन पर दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में सद्गुणों का विकास कर लिया था। यही कारण रह कि वे सर्वप्रिय रहे और आज भी हैं।
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पू. आचार्य भगवन की स्मृति में एक स्मारक ग्रंथ का प्रकाशन सराहनीय कार्य है। आपके इस आयोजन की सफलता के लिए मैं अपनी ओर से हार्दिक मंगल कामना प्रेषित करते हुए उनके परम पावन चरणों में कोटि-कोटि वंदन ।
प्रति,
ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण '
श्री मोहनखेड़ा तीर्थ
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प्रधान सम्पादक
श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ
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प्रकाशचन्द्र, रमेशचन्द्र राजेन्द्रकुमार महेन्द्रकुमार
भूपेन्द्रकुमार शांतिलालजी लोढ़ा
एडव्होकेट, खाचरौद
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