Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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द्वितीय परिच्छेद शब्दालंकारके चित्र, वक्रोक्ति, अनुप्रास और यमक ये चार मेद बतलाकर चित्रालंकारका विस्तारपूर्वक निरूपण किया है।
तृतीय परिच्छेद में वक्रोक्ति, अनुप्रास और यमकका विस्तारसहित निरूपण आया है ।
चतुर्थ परिच्छेद में उपमा, अनन्वय, उपमेयोपमा, स्मृति, रूपक, परिणाम, सन्देह, भ्रान्तिमान् अपह्नव, उल्लेख, उत्प्रेक्षा, अतिशय, सहोकि, विनोति, समासोक्ति, वक्रोक्ति, स्वभावोक्ति, व्याजोक्ति, मीलन, सामान्य, तद्गुण, मतद्गुण, विरोध विशेष अधिक विभाग, विशेषीवित, असंगति, चिन, अन्योन्य, तुल्ययोगिता, दीपक, प्रतिवस्तूपमा, दृष्टान्त, निदंशना, व्यतिरेकः इश्लेष, परिकर, आक्षेप, व्याजस्तुति, अत्रस्तुतस्तुति, पर्यायोक्त प्रतीप, धनुमान, काव्यलिंग अर्थान्तरन्यास, यथासंख्य अर्थापत्ति, परिसंख्या, उत्तर, विकल्प, समुच्चय, समाधि, भाविक, प्रेम, रस्य, ऊर्जस्वी, प्रत्यनीक, व्याघात, पर्याय, सूक्ष्म, उदात्त, परिवृत्ति, कारणमाला, एकावली, माला, सार, संसृष्टि और संकर इन ७० अर्थालंकारोंका स्वरूप यणित है ।
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पञ्चम परिच्छेदमें नव रस, घार रीतियों, द्राक्षापाक और शय्यापाक शब्दका स्वरूप, शब्द के भेद - रूड़, यौगिक और मिश्र, वाच्य, लक्ष्य और व्यंग्यार्थं, जहल्लक्षणा, अजहल्लक्षणा, सारोपा लक्षणा और साध्यवसाना लक्षणा, कौशिकी, आर्यभटी, सास्वती और भारती वृत्तियाँ, शब्दचित्र, अर्थ-चित्र, व्यंग्यार्थ के परिचायक संयोगादि गुण, दोष और अन्त में नायक-नायिका भेद-प्रभेद विस्तार पूर्वक निरूपित हैं ।
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वक्रोक्ति अलंकारका कथन दो संदर्भों में आया है तृतीय परिच्छेद और चतुर्थ परिच्छेद । इसमें पुनरुक्तिकी शंका नहीं की जा सकती है, यतः वक्रोक्ति शब्द शक्तिमूलक और अर्थशक्तिमूलक होता है । तृतीय परिच्छेदमें शब्दशक्तिमूलक और चतुर्थ परिच्छेद में अर्थशक्तिमूलक वक्रोक्ति निरूपित है ।
इस अलंकारग्रंथमें नाटकसम्बन्धी विषय और ध्वनिसम्बन्धी विषयोंको छोड़ शेष सभी अलंकारशास्त्रसम्बन्धी विषयोंका कथन किया गया है ।
प्रस्तुत ग्रन्थ दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-लक्षण और लक्ष्यउदाहरण | लक्षणसम्बन्धी सभी पद्य अजित्तसेन के द्वारा विरचित हैं और उदाहरणसम्बन्धी श्लोक महापुराण, जिनशतक, धर्मशर्माभ्युदय और मुनिसुव्रतकाव्य आदि ग्रन्थोंसे लिये हैं। इसकी सूचना भी ग्रन्थकारने निम्नलिखित पद्यमें दी है-
३२ तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य - परम्परा
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