________________
ताओ उपनिषद भाग ४
चलता
चलाते नहीं;
व
ह सब बंद हो जाताय होता है। उस पलिए किसी इंद्रिय
आप कुछ नहीं करते, मात्र होते हैं, जस्ट बीइंग, सिर्फ होते हैं। अगर इतना सा शब्द आपके खयाल में आ जाए, सिर्फ होना, और आप एक क्षण को भी चौबीस घंटे में इस होने की तलाश कर लें, जब आप कुछ भी नहीं करते, न शरीर कुछ करता है, न मन कुछ करता है; आप सिर्फ होते हैं। श्वास चलती है। शरीर में खून बहता है; वह आपको नहीं करना होता।
ध्यान रहे, जो आपके बिना किए होता है वह होता रहेगा। खून बहता रहेगा, पाचन चलता रहेगा, श्वास चलती रहेगी, हृदय धड़कता रहेगा, उसमें आपको कुछ करना भी नहीं पड़ता। ऐसे भी आप कोई हृदय को धड़काते नहीं, खून को चलाते नहीं; वह चल रहा है। वह प्रकृति का हिस्सा है। जो प्राकृतिक है वह आपके भीतर चलता है। और जो-जो आपने निर्मित किया है वह सब बंद हो जाता है।
उस मौन क्षण में आपको पहली दफा अपने से परिचय होता है। उस परिचय के लिए आंखों की कोई जरूरत नहीं, हाथों की कोई जरूरत नहीं, कानों की कोई जरूरत नहीं। उस परिचय के लिए किसी इंद्रिय की कोई जरूरत नहीं। वह परिचय अतींद्रिय है। उस परिचय के लिए मन की भी कोई जरूरत नहीं, क्योंकि मन भी बाहर की व्यवस्था रखने का उपाय है। बाहर कुछ भी करना हो तो मन की जरूरत है। भीतर कुछ भी, मन की जरा भी जरूरत नहीं है। । मन हमारा दूसरे से संबंध है। दूसरे से हमारा जो संबंधों का जाल है उसकी फैकल्टी, उसका यंत्र है हमारे भीतर मन। स्वयं से तो कोई संबंध का सवाल ही नहीं उठता। वहां तो दो नहीं हैं जहां संबंध की जरूरत हो। वहां तो अकेले ही हम हैं-असंग, असंबंधित, अकेले। महावीर ने उस अवस्था को कैवल्य कहा है अकेलेपन की वजह से, कि वहां सिर्फ अकेलापन है, वहां कोई भी नहीं है जिससे संबंधित हुआ जा सके।
इस कैवल्य के क्षण में, जब सारा कृत्य बंद हो गया हो, सिर्फ प्राकृतिक क्रियाएं चल रही हों और आप सिर्फ हों, क्या होगा? अनूठी घटनाएं घटती हैं। क्योंकि इस क्षण में भविष्य समाप्त हो जाता है, अतीत विलीन हो जाता है; सिर्फ वर्तमान रह जाता है। इस क्षण में, दूसरों ने जो भी आपके संबंध में कहा है, वह सब खो जाता है। इस क्षण में, जो भी आपने शास्त्रों से, अन्यों से जाना है, वह सब विलीन हो जाता है। इस क्षण में तो आप जीवन-ज्योति के साथ ही होते हैं। इस समय, आत्मा क्या है, यह सोचना नहीं पड़ता; क्योंकि सोचना तो तभी पड़ता है जब आप जानते नहीं। सोचते हम उसी संबंध में हैं जिसे हम नहीं जानते। इस संबंध में तो साक्षात्कार होता है, इस क्षण में तो हम आमने-सामने होते हैं।
यह जो आमना-सामना है, यह जो आत्म-साक्षात्कार है, लाओत्से या उपनिषद, या बुद्ध या महावीर या कृष्ण इसको ही ज्ञान का क्षण कहते हैं-मोमेंट ऑफ नोइंग। बाकी सब कचरा है। विद्वत्ता कचरा और कचरे का संग्रह है।
'जो स्वयं को जानता है वह ज्ञानी।'
और जब तक आप स्वयं को न जान लें तब तक जानना कि आप अज्ञानी हैं। क्योंकि यह ध्यान अगर बना रहे कि आप अज्ञानी हैं तो विद्वत्ता का उपद्रव आपके भीतर पैदा न हो पाएगा। अगर यह स्मरण बना रहे कि मुझे पता नहीं है तो पता करने की चेष्टा जारी रहेगी।
इस मुल्क में यह दुर्घटना घटी। अब उसे उलटाने का कोई उपाय नहीं है। इस मुल्क में यह बड़ी दुर्घटना घटी है, और वह यह है कि हमें जीवन के सभी सत्यों का पता है-आत्मा का, ब्रह्म का। ऐसा कुछ नहीं है जिसका हमें पता न हो। यहां हम पैदा होते हैं, श्वास हम पीछे लेते हैं, ब्रह्मज्ञान पहले मिल जाता है। यहां सभी को ब्रह्मज्ञान है। इसलिए यह मुल्क जितना अधार्मिक होता जा रहा है, उसका हिसाब लगाना मुश्किल है। लेकिन अधार्मिक होने का कारण न तो पाश्चात्य शिक्षा है, अधार्मिक होने का कारण न तो कम्युनिज्म का प्रभाव है, अधार्मिक होने का कारण कोई नास्तिकता की हवाएं नहीं हैं; अधार्मिक होने का कारण पांडित्य का बोझ है।
30