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स्वयं का ज्ञान ही ज्ञान है
कोई ध्यान कर रहा था, कोई पूजा कर रहा था, कोई प्रार्थना कर रहा था, जो कि बड़ी घबड़ाने वाली बात थी। चौबीस घंटे, उसने लोगों से पूछा कि क्या बस यही यहां होता रहता है? बस यहां तो कोई पूजा करता रहता है, कोई प्रार्थना करता रहता है, कोई ध्यान करता रहता है, कोई शीर्षासन करता है, कोई साधना। बस यही चलता है स्वर्ग में?
तो उसने कहा कि अच्छा हुआ, सोचा मन में कि परमात्मा से पहले ही पूछ लिया; यह तो बड़ा खतरनाक स्वर्ग मालूम होता है। नरक! स्वर्ग हट गया आंख के सामने से, दूसरा द्वार खुला। और वह नरक के सामने खड़ा है। द्वार खुलते ही ताजी हवाएं, संगीत का स्वर, नृत्य; देखा तो स्वर्ग तो यहां था। उसने कहा कि बड़ा धोखा चल रहा है जमीन पर। बड़ा राग-रंग था, बड़ी मौज थी। उसने सोचा कि अच्छा हुआ जो पहले ही पूछ लिया; स्वर्ग तो यहां है।
फिर उसकी नींद लग गई और सुबह वह मर गया। मर कर जब उसकी आत्मा यम के दफ्तर में पहुंची तो वहां पूछा गया कि नसरुद्दीन, कहां जाना चाहते हो? नसरुद्दीन मुस्कुराया; यम भी मुस्कुराया। नसरुद्दीन मुस्कुराया कि तुम मुझे धोखा न दे सकोगे, मैं तो देख चुका हूं कि कहां जाना है। और नसरुद्दीन ने समझा कि यम इसलिए मुस्कुरा रहा है कि मुझे कुछ पता नहीं है। नसरुद्दीन ने कहा कि मैं नरक जाना चाहता हूं। फिर भी यम मुस्कुराता रहा। तब उसे जरा बेचैनी हुई कि बात क्या है। उसने कहा कि सुना, मैं नरक जाना चाहता हूं। यम ने कहा कि निश्चित, तुम नरक जाओ। मगर यह कोई अनूठी बात नहीं है; अक्सर लोग नरक ही जाना चाहते हैं। नसरुद्दीन ने कहा, अनूठी बात नहीं है!
फिर नरक भेज दिया गया। जैसे ही नरक के द्वार पर प्रवेश किया तो बड़ा हैरान हुआ, चार शैतान के शिष्यों ने उस पर हमला बोल दिया। उसकी मार-पिटाई शुरू हो गई। वे उसे घसीटने लगे एक कड़ाहे की तरफ जहां आग जल रही थी। उसने कहा कि अरे, और अभी आधी रात की ही बात है, और जब मैं आया था। यहां तो सब हालत बदल गई। यह तो फिर वही जो पुराने ग्रंथों में लिखा है, वही हो रहा है। तो शैतान ने कहा कि जब तुम आए थे पहली दफा, यू हैड कम एज ए टूरिस्ट, तब आप एक अतिथि-यात्री की तरह आए थे। तो वह इतना हिस्सा हमने आप लोगों को देखने के लिए बना रखा है। यह असली नरक है।
आदमी जो व्यवहार से दिखाई पड़ रहा है, वह असली आदमी नहीं है; वह आपको दिखाने के लिए उसने बना रखा है। वह जो आप कर रहे हैं, वह आप असली नहीं हैं। उस करने में दूसरे पर ध्यान है। पूजा कर रहे हैं, प्रार्थना कर रहे हैं, तप कर रहे हैं, यह कर रहे हैं, वह कर रहे हैं; आप जो भी कर रहे हैं, वह आपका असली हिस्सा नहीं है। करने में तो धोखा दिया जा सकता है। व्यवहार आत्मा नहीं है। और दूसरे को तो धोखा दे ही सकते हैं, अपने को धोखा दे सकते हैं। क्योंकि करते-करते आपको भी भरोसा हो जाता है कि जो मैंने किया है वही मैं हूं। लोग अपने कर्मों के जोड़ को अपनी आत्मा समझ लेते हैं। कर्मों का जोड़ आत्मा नहीं है। कर्मों का जोड़ तो आत्मा पर पड़ी धूल है। वह गंदी हो सकती है, वह सुगंधित हो सकती है, यह दूसरी बात है। लेकिन वह धूल है जो इकट्ठी हो गई है। ।
यह जो आप दूसरे के संबंध में जानते हैं वह भी दूसरे को जानना नहीं है; वह भी दूसरे का व्यवहार जानना है। लेकिन इस जानकारी का नाम लाओत्से कहता है विद्वत्ता है। विद्वान होने से बचना और विद्वान होने से सावधान रहना! अज्ञानी भी सुने गए हैं कि पहुंच गए अंतिम सत्य तक, लेकिन विद्वान कभी नहीं सुने गए। और विद्वान भी तभी पहुंचता है जब वह पुनः अज्ञानी होने का साहस जुटा लेता है।
और जो स्वयं को जानता है वह ज्ञानी।'
स्वयं को जानना क्या है? किसी भी कृत्य से इसका संबंध नहीं है, क्योंकि सभी कृत्य बहिर्मुखी हैं। आप जो भी करते हैं वह बाहर जाता है। कोई करना भीतर नहीं लाता। कृत्य मात्र बाहर जाते हैं। जैसे पानी नीचे की तरफ बहता है ऐसे कृत्य बाहर की तरफ बहता है। वह कृत्य का स्वभाव है। तो आप जो भी करते हैं उससे स्वयं का ज्ञान न होगा। ऐसा कोई क्षण आपको खोजना पड़ेगा जब आप कुछ भी नहीं करते; उसी का नाम ध्यान है। ऐसा क्षण जब