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सूत्र संवेदना - २
को की हुई वंदना सकल कल्याण का कारण है । मिथ्यात्व रूपी जल से भरा हुआ और अनेक कुमत रूपी जलचर जीवों से व्याप्त इस संसारसमुद्र में यहाँ से वहाँ टकराते, विकल्पों के जाल में फसतें, आपत्ति के पत्थरों से टूटते, आयुष्य भी जहाँ क्षण दो क्षण में विनाश हो सकता है, ऐसे संसार में मनुष्यत्व प्राप्त करके भी बहुत जीवों को जो प्राप्त नहीं हुआ, वैसा परमात्मा का वंदन मेरे किसी परम भाग्योदय से आज मुझे प्राप्त हुआ है । सचमुच.... आज मैं धन्य बना हूँ, आज मैं कृतार्थ बना हूँ । इस जगत में करने योग्य कार्य हो तो यही है, इसके सिवाय कुछ भी करने योग्य नहीं है ।"
चैत्यवंदन से पूर्व अंतर को भावित करके, रोमांचित बनकर साधक को १७ गुण से युक्त लेश मात्र दोष न लगें, उस प्रकार से चैत्यवंदन विषयक सूत्र बोलने चाहिए ।
चैत्यवंदन के सूत्रों को किस प्रकार बोलना चाहिए :
सूत्र के शुद्ध उच्चारण के लिए अनुयोगद्वार नाम के आगम ग्रंथ में निम्नलिखित १७ मुद्दे बताए गए हैं ।
१. सिक्खियं (शिक्षितम् सीखा हुआ) आदि से अंत तक शब्द से और अर्थ से सीखा हुआ होना चाहिए । ___२. ठियं (स्थितम् स्थिर हुआ) सीखने के बाद विस्मृत न हो जाए, इसके लिए सूत्र स्वाध्याय द्वारा हृदय में स्थिर किया होना चाहिए । ___३. जियं (जितम् धारणा से जीता हुआ) स्वाध्याय करते समय अथवा कोई बोलने को कहे तो तुरंत ही आदि से अंत तक अखंडित और अस्खलित प्रकार से बोला जा सके, इस प्रकार से सूत्र तैयार किया हुआ होना चाहिए ।
४. मियं (मितम् अक्षरों की संख्या से मापा हुआ) सूत्र के पद तथा गुरुलघु अक्षरों की संख्या निश्चित प्रकार से जानी हुई होनी चाहिए ।
५. परिजियं (परिजियम्=सब प्रकार से आत्मसात् किया हुआ) आनुपूर्वी