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जगचिंतामणी सूत्र
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उज्जिंति पहु-नेमिजिण - गिरनार तीर्थ पर (बिराजमान) नेमिनाथ प्रभु (की जय हो।)
गिरनार पर्वत उज्जयंतगिरि अथवा रैवतगिरि के नाम से प्रसिद्ध है । उसके ऊपर बाइसवें तीर्थंकर श्रीअरिष्टनेमि (नेमिनाथ) की दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण ये तीन कल्याणक होने के कारण, यह अति पवित्र माना जाता हैं ।
जयउ वीर सच्चउरि मंडण - सांचोर (सत्यपुरी) मंडण ऐसे हे वीर प्रभु ! (आप की जय हो) ।
भरुअच्छहिं मुणिसुब्बय - भरुच में (बिराजमान) श्री मुनिसुव्रत स्वामी की (जय हो) ।
मुहरि (महुरि) पास दुह-दुरिअ-खंडण - दुःख और दुरित का नाश करने वाले माथुरी पार्श्व = मथुरा में रहे पार्श्व प्रभु की (जय हो) ।
इन पदों द्वारा उन-उन तीर्थस्थानों को स्मृति पथ में लाकर, उन तीर्थ द्वारा अनंत आत्माओं पर हुए उपकारों को याद करके भावपूर्वक वंदन करने से बहुत कर्मों का क्षय होता है और महान पुण्यबंध होता है तथा तीर्थ और तीर्थपति के वंदन से सम्यग्दर्शन की प्राप्ति, विशुद्धि और वृद्धि होती है।
अवर विदेहिं तित्थयरा - महाविदेह में विचरते दूसरे तीर्थंकरों को (मैं वंदन करता हूँ) ।
चिहुं दिसि विदिसि जिं के वि - चार दिशाओं में और विदिशाओं में रहे हुए जो कोई भी (तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ हैं, उनको मैं वंदन करता हूँ।)
तीआणागय संपइय वंदु जिण सव्वे वि - भूतकाल में हुए, भविष्य में होनेवाले और वर्तमान में विद्यमान हैं, उन सर्व तीर्थंकर परमात्माओं को मैं वंदन करता हूँ ।