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सूत्र संवेदना - २ भक्ति रस को वहन करनेवाले इस स्तोत्र द्वारा श्रद्धासंपन्न साधक आध्यात्मिक और भौतिक आपत्ति को टालकर, प्रभु के साथ नैकट्य पा सकते हैं एवं उसके द्वारा आत्मिक उन्नति के शिखरों को सर करके सिद्धिगति तक पहुँच सकते हैं ।
इस स्तोत्र की अनेकविध विशेषताओं में एक विशेषता यह है कि, इसमें अठारह अक्षर का 'नमिउण पास विसहर वसह जिण फुलिंग' नाम का एक अत्यंत फलदायक मंत्र रखा गया है, जो धरणेंद्र और पद्मावती से अधिष्ठित है । आज भी एकाग्रचित्त से इस मंत्र का जाप करने से सभी आपत्तियाँ दूर होती हैं । जैसे यह मंत्र शक्तिदायक है, वैसे इस मंत्र से युक्त यह संपूर्ण स्तोत्र भी विशिष्ट शक्तियुक्त है । पूर्वकाल में यह स्तोत्र बोलने पर देवता साक्षात् हाजिर होते थे, परन्तु भौतिक सुख के इच्छुक जीवों द्वारा उसका दुरुपयोग होने से इस स्तोत्र की कुछ गाथाएँ लोप कर दी गई। आज भी कहीं कहीं ये गाथाएँ देखने को मिलती हैं, परन्तु पूर्वाचार्यों द्वारा उनकी शक्ति का संहरण हो चुका है उस कारण तथा वर्तमान में अपना पुण्य अति अल्प होने के कारण आज हर वक्त देवता प्रत्यक्ष नहीं होते । __इस स्तोत्र में रचनाकृत विशेषता यह है कि, इसकी प्रथम गाथा में श्री पार्श्वनाथ प्रभु की ८० प्रकार से, दूसरी गाथा में ४० प्रकार से एवं तीसरी, चौथी और पाँचवी गाथा में दूसरे चार प्रकार से स्तुति होती है । इस तरह सब मिलाकर समग्र स्तोत्र द्वारा कुल (८० x ४० x ४) = १२८०० प्रकारों से श्री पार्श्वनाथ भगवान की स्तुति होती है। जिस स्तोत्र में मात्र पाँच ही गाथाओं द्वारा इतने प्रकारों से स्तुति हो सकती है, वह स्तोत्र कितना महिमाशाली होगा, वह सामान्य बुद्धि से भी समझा जा सकता है । 2. इस स्तोत्र की प्रथम हाथा में श्री पार्श्वनाथ प्रभु की ८० प्रकार से स्तुति किस तरह की गई है, उसे
सामान्य से समझने के लिए इस तरह गिनती करें । सर्वप्रथम तो 'उवसग्गहरं पास' शब्द के पाँच अर्थ हैं, 'कम्मघणमुक्कं' शब्द के दो अर्थ हैं । 'विसहरविसनिन्नासं' शब्द के चार अर्थ हैं तथा 'मंगल कल्लाण आवासं' शब्द के दो अर्थ हैं। इन सभी अर्थ इक्कट्ठा करने से ५४२४४४२=८० अर्थ प्राप्त होते हैं । इन सभी की विशेष विगत गुरुगम से समझें ।