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सूत्र संवेदना - २
आपकी सहायता चाहिए । आप हमें श्रुतज्ञान की प्राप्ति में सहायक बनें एवं उसके द्वारा हमारे सुख का कारण बने ! माँ ! आपके प्रभाव से ही अनेक महापुरुषों ने आज तक श्रुतज्ञान रूप गंगोत्री में स्नान करके परम आह्वाद प्राप्त किया है, आपकी सहायता से वे श्रेष्ठ कोटि के श्रुतज्ञान द्वारा आत्मिक सुख के स्वामी बने हैं, इसलिए आपसे माँगने का मन होता है -
“हे वागीश्वरी देवी ! आप हमारे सुख के लिए हों ! हे माँ शारदा ! आप ज्ञान की प्राप्ति में आनेवाले हमारे विघ्नों का नाश करके ज्ञान प्राप्ति के लिए अनुकूल सामग्री को हमें प्राप्त करवानेवाली बनें !" इस तरह यहाँ जो सुख की माँग की गई है, वह सुख अन्य कोई नहीं, मात्र श्रुतज्ञान में हमें सहायक बनें, उसी अर्थ में है।
इस प्रकार प्रार्थना करने से या उनका स्मरण करने मात्र से महासात्त्विक और पुण्यशाली आत्माओं को सरस्वती देवी प्रत्यक्ष होकर श्रुत-रचना आदि के कार्यों में बहुत सहायता करती हैं। विशिष्ट साधना करने से पुण्यात्माओं को दर्शन देकर, उनकी सहायता करती हैं । कई बार प्रत्यक्ष रूप में सहायता नहीं करती, तो भी श्रुत प्राप्ति के भाव से श्रुतदेवी की स्तुति ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय में और ज्ञानवृद्धि में कारण बनती है। सम्यग्ज्ञान से ऐसा प्रतीत होता है कि, सच्चा सुख मोक्ष में ही है । इसी सम्यग्ज्ञान से मोक्षमार्ग की भी जानकारी मिलती है । इसलिए सम्यग्ज्ञान द्वारा सच्चे सुख की प्राप्ति की प्रार्थना इस स्कुद्धि में है, ऐसा कहा जा सकता है । .यह गाथा बोलते हुए साधक सरस्वती देवी के बाह्य और अंतरंग स्वरूप को स्मरण में लाकर भावपूर्ण हृदय से ऊपर बताई गई प्रार्थना करते हुए सोचता है ,
“स्वर्गलोक की राजशाही के बीच भी जड़ पदार्थों की जंजाल को छोड़कर सरस्वती देवी श्रुत के लिए भक्तिवाली हुई हैं, उन की सहायता से मैं भी श्रुतज्ञान के मार्ग पर आगे बढ़कर आत्मिक सुख को शीघ्र प्राप्त करूँ ।”