Book Title: Sutra Samvedana Part 02
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 336
________________ सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र . ३१५ जोड़कर नमस्कार करते हैं क्योंकि वे मानते है कि, “इन परमात्मा के आगे हम कुछ भी नहीं हैं। परमात्मा की गुणसंपत्ति, उनकी वीर्यशक्ति, उनका आनंद, उनका सुख, उनकी निर्बाध स्थिति वगैरह के आगे हम तिल मात्र भी तुलना में नहीं आ सकते। इन गुणों को प्राप्त करने का, इस सुख को प्राप्त करने का उपाय भी एक ही है, आदरपूर्वक उनकी पूजा, भक्ति आदि करना।” इसीलिए सम्यग्दर्शनादि गुणों को प्राप्त किए हुए देव, देवेन्द्र अत्यंत बहुमानपूर्वक दो हाथ जोड़कर, मस्तक झुकाकर, वीर परमात्मा को नमस्कार करते हैं । तं देवदेव-महिअं सिरसा वंदे महावीरं - देवों के भी देव, (इन्द्र) जिनकी पूजा करते हैं । उन महावीरस्वामी भगवान को मैं मस्तक झुकाकर नमस्कार करता हूँ । जो तप और वीर्य से सुशोभित होते हैं, उन्हें वीर कहते हैं। अन्य अपेक्षा से उपसर्गों और परिषहों को समभाव से सहन करके जिन्होंने विशेष प्रकार से कर्मों का नाश किया है, वे वीर हैं। ऐसे वीर भगवान, देवों के देव-इन्द्र से भी पूजित हैं, ऐसा बताने से जगत्-पूजनीय प्रभु वीर की महानता का ख्याल आता है। प्रभु वीर की महानता का जिन्हें एहसास हो, उन आत्माओं के मन में परमात्मा के प्रति अत्यंत आदर बढ़ता है और आदर के कारण ही साधक का मस्तक झुक जाता है । यह गाथा बोलते हुए जो देवों के भी देव हैं और देव जिनको दो हाथ जोड़कर मस्तक झुकाकर प्रणाम करते हैं, उन वीर प्रभु को ध्यान में लाकर भक्ति भाव से प्रणाम करते हुए साधक सोचता है , “सामान्य जन देवों के पीछे पडे हैं, जब कि देवों के भी देव वीर प्रभु की सेवा में तत्पर हैं। मेरा परम सद्भाग्य है कि ऐसे देव 5 'वीरं' इति चान्वर्थसंज्ञेयं, महावीर्यराजनात्तपःकर्मविदारणेन कषायादि शत्रुजयात्केवलश्रीस्वयंग्रहणेन विक्रान्तो वीरः तम् । श्री योगदृष्टि समुच्चय

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