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चैत्यवंदन की विधि
३२९ या नहीं ? उसका विचार करके, चैत्यवंदन करने से पहले अधिकार प्राप्त करने के लिए यत्न करना चाहिए । • चैत्यवंदन में कौन-सी मुद्राएँ किस प्रकार और कब करनी चाहिए तथा तब कौन से भाव करने चाहिए, वह योग्य गुरु भगवंत के पास जान लेना
चाहिए । • चैत्यवंदन की विधि, उसमें आनेवाले सूत्र और उसके भावार्थों को योग्य
गुरु भगवंत से सीखकर, उनका अच्छा अभ्यास करना चाहिए। • उसके बाद 'भूमिका' में बताए अनुसार चैत्यवंदन के योग्य चित्त
तैयार करके संयोग के अनुसार जघन्य-मध्यम या उत्कृष्ट चैत्यवंदन
करना चाहिए । जघन्य चैत्यवंदन : १. प्रथम तीन खमासमण दें।
प्रभु में रहे अनंतज्ञान, अनंतदर्शन और अनंत चारित्र रूप गुण स्व में प्रकट हों, वैसी भावना के साथ तीन खमासमण देने चाहिए । प्रभु के ज्ञानादि गुणों के प्रति बहुमानपूर्वक किए गए इस वंदन का प्रयत्न, ज्ञानादि गुणों में विघ्न-आपादक कर्मों के नाश का कारण बनता है ।
२. उसके बाद खड़े होकर अरिहंत चेइयाइं०, अनत्थ० कहकर एक नवकार का काउस्सग्ग करें, काउसग्ग पारकर ('नमो अरिहंताणं' कहकर) 'नमोऽर्हत्' बोलकर अधिकृत जिन की स्तुति-थोय कहें ।
परमात्मा को तीन खमासमण देने के बाद पैर को जिनमुद्रा में और 1 ऊपर जो जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट चैत्यवंदन की विधि बताई गई है, वह व्यवहार में
प्रचलित विधि है और यहाँ जो विधि बताई गई है, वह चैत्यवंदन भाष्यादि ग्रंथ के आधार लिखी गई है। जघन्य चैत्यवंदन : 'नमो जिणाणं' इत्यादि एक पदरूप नमस्कार द्वारा अर्थात् मात्र अंजलिबद्ध प्रणाम द्वारा - १ श्लोक द्वारा अथवा १ से लेकर १०८ तक श्लोकों के द्वारा
और १ नमोत्थु णं रूप नमस्कार द्वारा, ऐसे पाँच प्रकार से जघन्य चैत्यवंदना होती है । 2 नमोऽर्हत सूत्र मात्र पुरुषों को बोलना है । 3 जिनमुद्रा में दो पैर के अंगूठे के बीच में चार अंगुल के बराबर अंतर और पीछे उससे कुछ
कम अंतर रखकर सीधे खड़ा रहना होता है ।