Book Title: Sutra Samvedana Part 02
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 349
________________ चैत्यवंदन की विधि प्रभु के साथ तादात्म्य साधने का श्रेष्ठ साधन चैत्यवंदन है। यदि शास्त्र में बताई गई विधि के अनुसार चैत्यवंदन किया जाए, तो साधक सहजता से परमात्मा के साथ अनुसंधान कर आत्मा का परम आनंद प्राप्त कर सकता है। चैत्यवंदन करने के पूर्व इतनी बातें ध्यान में रखनी चाहिए - • चैत्यवंदन करने के लिए पुरुषों को प्रभु की दाईं ओर और स्त्रियों को प्रभु की बाईं ओर बैठना चाहिए । • चैत्यवंदन करते हुए प्रभु और चैत्यवंदन करनेवाले साधक के बीच कम से कम (संभव हो तो) नौ हाथ का और ज़्यादा से ज्यादा साठ हाथ का अंतर रखना चाहिए । • श्रावकों को अंग और अग्रपूजा पूर्ण करने के बाद और श्रमण भगवंतों को तीन प्रदक्षिणा वगैरह की क्रिया पूर्ण करने के बाद, चैत्यवंदन करने के पूर्व द्रव्य पूजादि के त्याग रूप तीसरी बार 'निसीहि' बोलना चाहिए। • साधु भगवंतों को रजोहरण से और श्रावक-श्राविकाओं को खेस या साड़ी के पल्लू से किसी भी जीव की विराधना न हो, इसलिए चैत्यवंदन करने की भूमि की प्रमार्जना करनी चाहिए । • चैत्यवंदन करने के अधिकारी कौन हैं ? और मैं अधिकार संपन्न हूँ

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