Book Title: Sutra Samvedana Part 02
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 343
________________ GROG वेयावच्चगराणं सूत्र सूत्र परिचय : इस सूत्र का तात्पर्यार्थ समझने के लिए यह जानना बहुत ज़रुरी है कि, यह सूत्र क्यों बोला जाता है ? यह क्या सूचित करता है ? और कौन बोलता है ? यह जाना जाए, तो ही इस सूत्र का भावार्थ समझा जा सकता है । यह सूत्र उत्कृष्ट चैत्यवंदन की क्रिया में बोला जाता है । चैत्यवंदन की क्रिया लोकोत्तर कुशल परिणाम का याने शुभभाव का कारण है । शुभभाव को प्रकट करने के लिए ही हमारे समक्ष रहे अरिहंत भगवंत, चौबीस जिन और उसके बाद वर्तमान में कदम-कदम पर परम उपकारी बननेवाले श्रुतज्ञान की स्तवना की जाती है। इस स्तवना से प्रकट हुआ आत्मिक आनंद प्रकृष्ट कोटि के पुण्य का बंध-अनुबंध करवाता है। ऐसा पुण्य जिसने बाँधा हो, वैसा जीव औचित्य का पालन करने के लिए यह सूत्र बोलकर कायोत्सर्ग करता है । साधक समझना है कि ऐसे विषम संसार में शुभभावों को प्रकट करना और प्रकट हुए शुभभावों को सुरक्षित रखना, आसान नहीं है। शुभभाव की यह प्रवृत्ति सैकड़ों विनों से भरी हुई है, तो भी इस शुभभाव में जैसे अरिहंत

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