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सूत्र संवेदना - २
यह गाथा बोलते हुए सोचना चाहिए - "विशिष्ट कोटि का एक ही नमस्कार यदि संसार सागर से आत्मा को तार सकता हो, तो सबसे पहले मैं उस प्रकार के नमस्कार के लिए प्रयत्न करूँ जिससे मैं भी इस भयावह संसार
सागर से तैर सकूँ !" दिगंबर संप्रदाय की ऐसी मान्यता है कि स्त्रियाँ अल्पसत्त्वशाली, अत्यंत परिग्रहवाली और तुच्छ स्वभाववाली होती हैं, इसलिए उनकी मुक्ति नहीं होती। 'नारिं वा' शब्दों के उल्लेख द्वारा उनकी यह मान्यता अयोग्य है, यह साबित होता है - सीता, अंजना, अनुपमा देवी जैसी महासतियाँ महासत्त्ववाली, उदारतादि अनेक गुणवाली और मूर्छारूप परिग्रह से रहित थीं। इसलिए स्त्री को भी मोक्ष सुख की प्राप्ति मानने में कोई भी शास्त्रीय बाधा नहीं बताई गई है। अनेक गुणवान स्त्रियों के मोक्ष में जाने के उल्लेख भी मिलते हैं। __ वीर प्रभु की स्तवना करने के बाद अब गिरनार मंडन नेमिनाथ भगवान की स्तुति करते हुए कहते हैं कि -
उजिंतसेल-सिहरे दिक्खा नाणं निसीहिया जस्स - उज्जयंत पर्वत के शिखर पर जिनकी दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्षकल्याणक हुए हैं (उन नेमिनाथ भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ।)
तीर्थंकर परमात्मा के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्ष - ये पाँच प्रसंग अनेक जीवों के कल्याण का, सुख-आनंद का कारण होने से उन्हें कल्याणक कहा जाता है।
परमात्मा जब माता के गर्भ में पधारे, तब उसका ज्ञान देवेन्द्र को भी आनंदित करता है । प्रभु के जन्म की बधाई माता-पिता और नगरजनों को तो आनंदित करनी ही है, परन्तु भौतिक सुख में मशगूल देव और देवेन्द्र भी प्रभुजन्म के समाचार से आनंदित होकर, दैविक सुखों को छोड़कर अपने जन्म को कृतार्थ करने के लिए मृत्युलोक में प्रभु के जन्म महोत्सव के लिए दौड़कर आते हैं। प्रभु की दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्ष के प्रसंगों