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सूत्र संवेदना - २
उसकी गहराई तक पहुँचना बहुत मुश्किल है। मरजिया (गोताखोर) जैसा कोई महाबुद्धि संपन्न व्यक्ति ही इसके रहस्य तक पहुँच सकता है । इसलिए कहा गया है कि, जिनागम समुद्र की तरह बोध से गहन है - अगाध है ।
जैसे पानी से भरा हुआ जलनिधि देखते ही मनोहर लगता है, वैसे ही सुंदर पदों की रचना से भरा आगम भी प्रथम नज़र में ही आकर्षक लगता है । आगम में आनेवाले पदों की रचना लयबद्ध, सुंदर शब्दों से सुशोभित होती है तथा आत्मभाव का प्रकाशन करनेवाले, सभी को हित का मार्ग बतानेवाले और जगत् का यथार्थ स्वरूप बतानेवाले ये पद प्रीतिकर होते हैं ।
जीवाहिंसाविरल-लहरी-संगमागाहदेह - जिस तरह समुद्र अपनी तरंगों - लहरों के कारण अनन्त लगता है, वैसे ही जिनागम अपने जीवदया के सिद्धांतों के संगम के कारण अगाध अनंत लगता है । __ समुद्र में निरंतर आनेवाली लहरों के कारण जैसे समुद्र अगाध देहवाला याने विशाल दीखता है, उसका कहीं पार नहीं दीखता, वैसे ही जैन सिद्धांत में आनेवाले अहिंसक भाव के द्योतक पदों के संयोग से जैन सिद्धांत भी अगाध10 देहवाला दीखता है ।
9. जीव की अहिंसा वह जीवाहिंसा/अविरल-निरंतर, जो अलग हो, वह विरल कहलाता है।
अविरल का अर्थ उसके प्रतिपक्षी भाव में निरंतर-अंतर रहित होता है । लहरी-तरंग। संगम जुड़ना है। जहाँ एक तरंग शांत होती है वहाँ दूसरी उठती है और दूसरी शांत होती है वहाँ तीसरी उठती है वहाँ लहरों का संगम हुआ, ऐसा माना जाता है । ऐसी क्रिया जहाँ निरंतर चलती रहती हो, वह अविरल-लहरी-संगम कहलाती है और इस प्रकार जहाँ निरंतर लहरी का संगम होता रहता हैं ; तरंगें उछलती रहती है और जहाँ किसी को प्रवेश करना मुश्किल होता है, उस कारण वह अगाह - देह हो जिसमें प्रवेश न कर सके, वैसे देहवाला कहलाता
10. गणधर भगवंतों के रचे आचारांगादि सिद्धांत (द्वादशांगी) में १८००० बगैरह डबल-डबल पद
होते हैं । एक पद में ५१,०८,८४,६२१ श्लोक आते हैं, इसलिए आगम अगाध कहलाते हैं ।