Book Title: Sutra Samvedana Part 02
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 332
________________ सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र सर्व कर्मरहित और केवलज्ञान पाए हुए परमात्मा ने संसार को पार कर लिया है । अब वे पुनः संसार में नहीं आते और उनक कुछ भी करना बाकी नहीं हैं। ३११ जीव जब तक कर्मयुक्त और ज्ञानादि गुणों से रहित होता है, तब तक उसे संसार में एक स्थान से दूसरे स्थान में भटकना पड़ता है, चार गति के चक्कर में घूमना पड़ता है। एक योनि में से दूसरी योनि में जन्म लेकर मरना पड़ता है, परन्तु जब जीव केवलज्ञानादि गुणों को प्रकट करके सर्वकर्म से मुक्त होकर सिद्धिगति को प्राप्त करता है, फिर उसे पुनः इस संसार में भटकना नहीं पड़ता, इसलिए उन्हें संसार समुद्र से पार पाए हुए कहा जाता है । तथा 'पारगयाणं' का अर्थ जिसके सर्व प्रयोजन सिद्ध हो चूके हैं, ऐसा भी होता है। जिनके लिए अब करने योग्य कुछ बाकी नहीं रहता, वह कृतकृत्य या सिद्ध कहलाते हैं । संसार रसिक जीवों को सांसारिक सुख प्राप्त करने के लिए धनादि की जरूरत पड़ती है और उसके लिए वे सैंकड़ों प्रयत्न भी करते हैं, जब कि सिद्ध भगवंतो को सुख प्राप्त करने के लिए कुछ करना नहीं पड़ता । ये ऐसे जीव हैं कि जो परमसुख को प्राप्त कर चुके हैं, जिन्हें अब कुछ भी करना बाकी नहीं है । संसार के पार को प्राप्त किए हुए सिद्ध भगवंत इस अवस्था को जिस प्रकार प्राप्त करते हैं, वह बताते हुए कहते हैं परंपरगयाणं - परंपरा से मोक्ष को प्राप्त किए हुए (सिद्ध परमात्मा को मैं नमस्कार करता हूँ ।) सिद्ध भगवंत परंपरा से मोक्ष में गए हैं अर्थात् क्रमिक गुण का विकास 3 कितने स्वेच्छावादी ऐसा मानते हैं कि - दरिद्र आत्मा को जैसे अचानक राज्य की प्राप्ति हो जाती है, वैसे अचानक किसी को मोक्ष मिल जाता है । इस पद में मोक्ष की प्राप्ति, क्रमिक विकास से होती है, ऐसा बताया गया है । इसके द्वारा वह मत भी योग्य नहीं है, यह साबित होता है।

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