Book Title: Sutra Samvedana Part 02
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 333
________________ सूत्र संवेदना - २ में - करते-करते वे मोक्ष तक पहुँचे हैं । सिद्ध भगवंत भी पूर्व में भूतकाल हमारे जैसे दोषयुक्त ही थे, परन्तु साधना द्वारा वे मिथ्यात्वादि दोषों को दूर करते हैं और सम्यक्त्वादि गुणों को प्रकट करते हैं । इस प्रकार क्रमिक गुणों का विकास करते-करते ही वे मोक्ष में जाते हैं । ३१२ इस तरह सिद्ध भगवंत को स्मृति में लाने से साधक आत्मा को एक आश्वासन मिलता है कि, सत्ता से तो मैं और सिद्ध भगवंत दोनों समान ही हैं, मात्र उन्होंने अपना स्वरूप प्रकट कर लिया है, जब कि मेरा वह स्वरूप अब तक कर्म से आच्छादित है। उन्होंने जैसे साधना करके कर्मों के आवरण को दूर किया और क्रमिक गुण का विकास करते-करते (अर्थात् चौदह गुणस्थानक के क्रम से) वे जैसे मोक्ष तक पहुँच सके वैसे मैं भी अगर उनका आलंबन लेकर प्रयत्न करूँ तो मिथ्यात्वादि दोषों को टालकर, गुण का विकास करते-करते मोक्ष तक पहुँच सकूँगा । इस तरह इस पद द्वारा जिन्होंने परंपरा से मोक्ष को प्राप्त किया है वैसे सिद्ध भगवंतों को स्मृति में लाकर, वंदन करना है । अब सिद्ध भगवंत कहाँ रहते हैं, वह बताते हैं - लो अग्गमुवगयाणं' - लोक के अग्रभाग को प्राप्त ( सिद्ध परमात्मा को मैं नमस्कार करता हूँ।) कर्मरहित आत्मा का स्वभाव ऊर्ध्वगमन का है । सिद्ध भगवंत कर्मरहित है, इसलिए वे ऊर्ध्व दिशा में लोक के अंतिम भाग में जाकर स्थिर होते हैं। चौदह राजलोकमय इस विश्व के ऊपर के अंतिम भाग में एक सिद्धशिला है। वह ४५ लाख योजन लम्बी-चौड़ी, मध्य में आठ योजन मोटी, अंत में मक्खी के पंख जैसी पतली, तवे की तरह गोलाकार, शुद्ध स्फटिक रत्न की बनी हुई और दूर से दूज के चंद्र जैसी दीखती है । उस 4 जो ऐसा मानते है कि कर्मरहित आत्मा किसी भी अनियत स्थान में रहती है, यह बात योग्य नहीं है, ऐसा इस पद द्वारा साबित होता है ।

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