Book Title: Sutra Samvedana Part 02
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 297
________________ पुक्खरवरदी सूत्र सूत्र परिचय : दीपक की तरह जगत् के सब भावों को श्रुतज्ञान प्रकाशित करता है, ऐसे श्रुतज्ञान की इस सूत्र से स्तवना की गई है, इसलिए इसका दूसरा नाम 'श्रुतस्तव' है । श्रुतज्ञान अरिहंत परमात्मा का वचन ही है । केवलज्ञान पाने के बाद याने कि तीर्थंकर नाम कर्म का विपाकोदय होने के बाद तीर्थंकर भगवंत गणधर पद के योग्य आत्माओं को, जगत् के पदार्थों का यथार्थ बोध करवाने के लिए त्रिपदी प्रदान करते हैं। त्रिपदी के श्रवण मात्र से उनकी आत्मा में ज्ञानावरणीय कर्म का विशिष्ट प्रकार का क्षयोपशम होता है । उससे वे जगत् के भावों को यथार्थ रूप से जान सकते हैं। जाने गए उन भावों में से अभिलाप्य-कह सके, ऐसे भावों को वे शब्द रचना द्वारा व्यक्त करते हैं । शब्दामक इस रचना को द्वादशांगी कहते हैं । यह द्वादशांगी द्रव्यश्रुत है और इस द्वादशांगी के अध्ययन से अथवा योगाभ्यास से होनेवाला ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम, भावश्रुत है । इस सूत्र में भावश्रुत के कारणभूत ऐसे द्रव्यश्रुत की स्तवना की गई है ।

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