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सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र . ३०७ बताया गया है । चौथी गाथा में बाल ब्रह्मचारी नेमिमा भगवान के कल्याणक भूमि की जानकारी के साथ उन्हें वंदना की गई है । पाँचवी गाथा में ४-८-१०-२ ऐसी संख्या पूर्वक चौबीसों भगवंत तथा अन्य तीर्थ और तीर्थंकरों को भी वंदना की गई है । यहाँ इतना खास ध्यान में रखना चाहिए कि, यह सूत्र सिद्धस्तव है, यहाँ प्रत्येक भगवान की सिद्ध अवस्था की स्तुति की गई है ।
इस सूत्र की अंतिम दो गाथाएँ पीछे से प्रक्षिप्त हुई होंगी ऐसा लगता है क्योंकि ललितविस्तरादि ग्रंथों में इन दो गाथाओं का विवेचन देखने को नहीं मिलता । फिर भी पूर्वाचार्यकृत ये दोनों गाथाएँ गीतार्थ गुरु भगवंतों को मान्य होने से देववंदनादि में बोली जाती हैं । ___ इस सूत्र का मुख्य उपयोग देववंदन तथा प्रतिक्रमण में होता है । पुक्खरवरदी सूत्र बोलकर श्रुत की स्तवना करने के बाद श्रुतज्ञान का अंतिम फल सिद्ध अवस्था है । इसलिए सिद्ध भगवंतों की स्तवना के लिए यह सूत्र बोला जाता है । मूल सूत्र :
सिद्धाणं बुद्धाणं, पार-गयाणं परंपर-गयाणं । लोअग्गमुवगयाणं, नमो सया सव्व-सिद्धाणं ।।१।।
जो देवाण वि देवो, जं देवा पंजली नमसंति । तं देवदेव-महिअं, सिरसा वंदे महावीरं ।।२।। इक्को वि नमुक्कारो, जिणवर-वसहस्स वद्धमाणस्स ।
संसार-सागराओ, तारेइ नरं व नारिं वा ।।३।। उजिंतसेल-सिहरे, दिक्खा नाणं निसीहिआ जस्स । तं धम्म-चक्कवडिं, अरिहुनेमिं नमसामि ।।४।।