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पुक्खरवरदी सूत्र
२७९ लोगो जत्थ पइट्ठिओ जगमिणं तेलुक्क-मञ्जासुर । धम्मो वड्डउ सासओ विजयओ धम्मुत्तरं वड्डउँ ।।४।। सुअस्स भगवओ करेमि काउस्सग्गं, वंदण-वत्तियाए० । पद-१६
संपदा-१६ अक्षर-२०९/२१६ अन्वय सहित संस्कृत छाया और शब्दार्थ : पुक्खरवर-दीवड्डे, धायइसंडे य जंबूदीवे य । पुक्खरवर-द्वीपार्धे, धातकीखण्डे च जम्बूद्वीपे च । पुष्करवर नाम के अर्ध द्वीप में, धातकी खंड में और जंबूद्वीप में और भरहेरवय-विदेहे, धम्माइगरे नमसामि ।।१।। भरत-ऐरवत-विदेहे, धर्मादिकरान् नमस्यामि ।।१।। भरत, ऐरवत और विदेह नाम के क्षेत्र में धर्म की शुरुआत करनेवालों को मैं नमस्कार करता हूँ ।।१।। तम-तिमिर-पडल-विद्धंसणस्स, सुरगण-नरिंद-महिअस्स, सीमाधरस्स, पप्फोडिय-मोहजालस्स वंदे ।।२।। तमस्तिमिर-पटल-विध्वंसनं, सुरगण-नरेन्द्र-महितं, सीमाधरं, प्रस्फोटित-मोह-जालं वन्दे ।।२।।
अज्ञानरूपी अंधकार के पटलों को दूर करनेवाले, देव के समूह और नरेन्द्रों से पूजित, मर्यादा को धारण करनेवाले और मोह (मिथ्यात्व) की जाल को विशेष प्रकार से तोड़नेवाले (श्रुतधर्म को) मैं वंदन करता हूँ ।
जाइ-जरा-मरण-सोग-पणासणस्स । जाति-जरा-मरण-शोक-प्रणाशनस्य । जन्म, वृद्धावस्था, मृत्यु (और) शोक का नाश करनेवाले, कल्लाण-पुक्खल-विसाल-सुहावहस्स ।। कल्याण-पुष्कल-विशाल-सुखावहस्य । पुष्कल कल्याण और विशाल सुख को देनेवाले,