Book Title: Sutra Samvedana Part 02
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 290
________________ संसारदावानल स्तुति २६९ द्रव्य और भावहिंसा से पीड़ित जगत् को देखकर, उस हिंसा से जगत् के सब जीवों की रक्षा करने के लिए ही भगवान ने जैनशासन की स्थापना की है । इसलिए जैन शास्त्र का एक भी पद ऐसा नहीं है कि जिसमें द्रव्य से या भाव से अहिंसा का उल्लेख न किया हो । फिर भले ही उसमें दान, शील, तप या भाव की बात हो, ज्ञान या क्रिया की बात हो या द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का विचार हो । इन सभी बातों का तात्पर्य तो हिंसा से बचाकर अहिंसक भाव की तरफ जाने के लिए ही होता है । जैन आगम में बताए मार्ग के अनुसार जीने से सूक्ष्म या बादर, किसी भी जीव की द्रव्य से या भाव से मन-वचन या काया से और करण-करावण या अनुमोदन से एक क्षण भी हिंसा न हो, उस प्रकार संपूर्ण जीवन व्यतीत किया जा सकता है । ऐसी अहिंसा की बातें या अहिंसामय जीवन का आचरण करने की व्यवस्था जैन शास्त्र में बताई गई है । अहिंसा का सिद्धांत तो सभी धर्मो में स्वीकार किया गया है, लेकिन जीवों को होनेवाली पीड़ा का सूक्ष्मतम वर्णन तथा जीवों की हिंसा से बचने के और उनकी पीड़ा से अटकने के उपायों का वर्णन जैनशास्त्रों में जैसा है, वैसा अन्यत्र कहीं भी नहीं है । चूला-वेलं, गुरुगम-मणी-संकुलं,11 दूरपारं सारं - चूलिकारूपी बड़ी तरंगें जिसमें है, बड़े और समान पाठरूपी मणि से जो व्याप्त है जिसका किनारा दूर है और जो श्रेष्ठ है (ऐसे वीर प्रभु के आगम की मैं सम्यग् प्रकार से सेवा करता हूँ ।) चूला-वेलं : पूर्णिमा के दिन जब समुद्र में ज्वार (भरती) आता है, तब पानी बहुत ऊँचा ऊँचा उछलता है, उसे वेला कहते हैं । ऐसी लहरों से भी जलधि नयनरम्य लगता है। उसी प्रकार जैनागम में भी आगमग्रंथों की रचना करने के बाद उन शास्त्रों के भावों को विशेष प्रकार से बताने के 11. गुरु ऐसे गम, वह गुरु-गम, उस रूप मणी और उसका संकुल, वह गुरु-गम-मणी-संकुलं । यह पद भी वीरागम का विशेषण है । मणी शब्द दीर्घान्त भी मिलता है ।

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