Book Title: Sutra Samvedana Part 02
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 281
________________ सूत्र संवेदना - २ आत्मा की कर्मयुक्त और कषाययुक्त अवस्था संसार कहलाती है । यहाँ संसार को दावानल की उपमा दी गई है और वीरप्रभु को दावानल को बुझानेवाले पानी की उपमा दी गई है । २६० जैसे दावानल जंगल के पेड़-पौधों और प्राणियों को जलाकर, दुःखी करता है, वैसे ही इस संसार में सतत उत्पन्न होनेवाले राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कषाय चित्त में नए-नए संकलेशो को उत्पन्न करके जीवों को जलाते हैं । संसार में प्रायः एक क्षण भी ऐसा नहीं होता कि जब जीव कषायों से मुक्त होकर आत्मा का आनंद - आत्मा का सुख प्राप्त कर सके, इसीलिए ही ज्ञानी पुरुषों ने संसार को दावानल की उपमा दी है । जैसे जंगल में लगे हुए दावानल को बुझाने के लिए प्रचंड पानी के प्रवाह की जरूरत पड़ती है, वैसे ही यह संसार रूपी दावानल भी परमात्मा की वाणी रूप पानी के प्रचंड प्रवाह से ही शांत हो सकता है । जैसे-जैसे योग्य आत्मा भगवान की वाणी को समझती जाती है, वैसेवैसे उसके हृदय में जड़ विषयों के प्रति विरक्ति का परिणाम प्रकट होता है। जीवों के प्रति मैत्री भाव का प्रादुर्भाव होता है । उसके कारण राग, द्वेष आदि कषायों के संक्लेश शांत होते हैं । आत्मा उपशम भाव के आनंद का अनुभव कर सकती है । इस मार्ग पर विशेष - विशेष प्रयत्न करने से जीव संसार के तमाम संतापों से मुक्त बनकर महाआनंदयुक्त मोक्ष सुख को प्राप्त कर सकते हैं । इसीलिए यहाँ वीर भगवान की वाणी का वीर भगवान के साथ अभेद करके वीर भगवान को पानी की उपमा दी गई है । जिज्ञासा : यहाँ संसार को दावानल तुल्य कहा गया है, परन्तु पुण्योदय से प्राप्त हुए सुख-सुविधा भरे संसार को दावानल तुल्य कैसे कह सकते है ? तृप्ति : सुख-सुविधा से भरा हुआ भी यह संसार वास्तव में दावानल जैसा ही है क्योंकि सब को इष्ट ममता या लगाव आदि के भाव वर्तमान में भी भय, चिंता, विह्वलता, आकुलता आदि रूप दाह उत्पन्न करते हैं,

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