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कल्लाण-कंदं सूत्र
पासं पयासं सुगुणिक्कठाणं, भत्तीइ वंदे सिरिवद्धमाणं : प्रकाश करनेवाले पार्श्वनाथ भगवान की (और) सब गुणों के एक स्थानभूत ऐसे श्री वर्धमानस्वामी की मैं भक्तिपूर्वक वंदना करता हूँ ।
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पासं पयासं पार्श्व प्रभु जब गर्भ में थे, तब उनके पुण्य प्रभाव से अमावस्या की अंधेरी रात में भी वामा माता ने सर्प को देखा था । इस तरह प्रभु द्रव्य से प्रकाशक बने और केवलज्ञान को प्राप्त कर देशना देने के द्वारा परमात्मा ने जगत् के जीवों को जड़ की आसक्ति से होनेवाले उपद्रव से और जीव के साथ मोहकृत संबंधों से होनेवाली पीड़ाओं से मुक्त होने रूप सुख को प्राप्त करने का मार्ग बताया । इस तरह परमात्मा भाव से प्रकाशक बनें । भाव से प्रकाशक पार्श्वनाथ परमात्मा का वंदन, भावप्रकाश स्वरूप सन्मार्ग की प्राप्ति में आनेवाले विघ्नों का नाश कर सन्मार्ग पर चलने के लिए वीर्य की वृद्धि करवाता है ।
सुगुणिक्कसारं सिरिवद्धमाणं भतीइ वंदे - उत्तम गुणों के आश्रय स्थानरूप वीरप्रभु की मैं भक्तिभाव से वंदना करता हूँ ।
जन्म से लेकर श्री वीर परमात्मा की एक-एक अवस्था और उनकी एकएक क्रिया विशिष्ट गुणों का दर्शन करवाती है। जन्म होते ही १ करोड़ और ६० लाख कलशों से देव और देवेन्द्र उनका जन्म महोत्सव मनाते हैं, तब नायगरा के झरने जैसा पानी का प्रवाह एक दिन के (एक प्रहर के ही ) परमात्मा के ऊपर पड़ने के बावजूद परमात्मा के मुख पर भयादि का विकार मात्र भी नहीं दीखता । श्रेष्ठ पुण्य से मिली विपुल भोग- सामग्री के बीच जीवन जीने के बावजूद परमात्मा को कहीं राग का स्पर्श मात्र नहीं होता। संसार में निकाचित भोगावली कर्मों के उपभोग के समय भी वे परम अनासक्त रहते हैं । उन्हें संसार में कहीं भी राग का स्पर्श मात्र नहीं होता, फिर भी अपना कर्त्तव्य पूरे करने में, औचित्य का पालन करने में कहीं भी कमी नहीं दीखती । पिता के रूप में, पुत्र के रूप में या पति के रूप में जब
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