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सूत्र संवेदना - २
“मैं संसार में डूबा हुआ हूँ । मेरे प्रभु संसार के पार को पा चुके हैं। पुण्यहीन मैं देवों के पीछे दौड़ता हूँ, जब कि पुण्यवान ऐसे मेरे प्रभु के पीछे देवता दौड़ते हैं, भावपूर्वक भक्ति करते हैं । हे नाथ ! आपकी शक्ति और आपका पुण्य असीम है, इसलिए प्रभु ! आप से प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे सर्वसुख के धाम
तुल्य शिव (मोक्ष) प्रदान करें ।” अब श्रुतज्ञान की स्तवना करते हुए कहते हैं -
निव्वाण-मग्गे वरजाण-कप्पं - मोक्ष तक ले जानेवाले श्रेष्ठ यानपात्र (वाहन) तुल्य (श्रुतज्ञान को मैं नमस्कार करता हूँ ।)
आत्मा की कर्मरहित, कषायरहित और शरीरादि के बंधन से रहित परम आनंदमय, परम सुखमय अवस्था मोक्ष (निर्वाण) है । सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्र, यह मोक्षमार्ग है । उसमें निश्चयनय से मोक्ष की प्राप्ति में कारणभूत दर्शन, ज्ञान और चारित्र की कोई एक क्रिया भी मोक्ष का कारण बनती है।
यह मोक्षमार्ग ज्ञान से ही जाना जा सकता है, इसलिए यहाँ ज्ञान को मुख्य रूप से मोक्षमार्ग का श्रेष्ठ यान मतलब वाहन कहा गया है। ज्ञान होने के बाद श्रद्धा होती है और श्रद्धा के अनुसार प्रवर्तन ही चारित्र है, अतः ज्ञान को मोक्षमार्ग में आगे बढ़ने का श्रेष्ठ यान कहा गया है। श्रेष्ठ वाहन जैसे शीघ्र इष्ट स्थान पर पहुँचा देता है, वैसे ही भगवान के वचनरूप श्रेष्ठ यान का अवलंबन लेनेवाले भी शीघ्र इष्ट स्थान पर पहुँच जाते हैं।
पणासियासेस-कुवाइदप्पं - सभी कुवादियों के अभिमान का जिन्होंने अत्यंत नाश किया है (ऐसे जिनमत को मैं नमस्कार करता हूँ ।)
‘सत्य क्या है' ? - यह जानने की इच्छा से शास्त्रों की - सिद्धांत की चर्चा करना वाद है। शास्त्रानुसार ऐसा वाद करनेवाले को वादी कहते हैं। जब कि मलिन आशय से या अपनी गलत बात को भी सच्ची ठहराने के लिए चर्चा करना कुवाद कहलाता है और ऐसी चर्चा करनेवाले को कुवादी कहा जाता है ।