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जयवीयराय सूत्र (प्रार्थना सूत्र)
१८५ सुंदर हो, जिससे मोक्षमार्ग में आगे बढ़ा जा सके, उसमें कोई अवरोध खड़ा न हो, वैसी चीज़ की प्राप्ति ही यहाँ इष्टफल सिद्धि है। है ___ जो चीज मिलने के बाद मोक्षमार्ग में निर्विघ्न आगे बढ़ा जा सके और यदि वह न मिले, तो मोक्षमार्ग का प्रयाण अटक जाए, वैसी कोई भी चीज़ हो वह यहाँ 'इष्टफल' अर्थात् मनोवांछित फल के रूप में ग्रहण करनी है। ऐसी 'इष्टफल की सिद्धि' की प्रार्थना इस पद से की गई है ।
कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्यजी महाराज इष्टफल की सिद्धि की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि, इष्टफलसिद्धि अर्थात् आलोक के अभिमत (इष्ट) अर्थ की प्राप्ति जिससे चित्त स्वस्थ रहे - निराकुल रहे और उस चित्त की स्वस्थता से उपादेय धर्म में प्रवृत्ति हो सके, इस तरह धर्म की वृद्धि में विघ्नभूत न बने, परन्तु उपकारक बने ऐसे इहलौकिक फल की प्राप्ति ही इष्टफल की सिद्धि कहलाती है । जिसका परिणाम इष्ट (मोक्षरूप अंतिम इष्ट) आनेवाला हो, वह इष्ट और जिसका परिणाम अनिष्ट - खराब आनेवाला हो, वह अनिष्ट । दूसरे तरीके से सोचें तो भवनिर्वेद, मार्गानुसारिता अकबंध टिकी रहे, मोक्षमार्ग में आगे बढ़ सकें, उसमें आनेवाले अवरोध दूर हों, उसकी प्रार्थना 'इष्टफल सिद्धि' की प्रार्थना बनती है ।
5. इहलौकिक सामग्रियाँ इष्ट या अनिष्ट दोनों तरीके से प्राप्त हो सकती हैं। जिस वस्तु की
प्राप्ति से रागादि की वृद्धि हो, विषयों का आकर्षण बढ़े वह अनिष्ट वस्तु है और जिसकी प्राप्ति से दान, शील, और वैराग्यादि भावों की वृद्धि हो, मोक्षमार्ग के प्रयत्न में वृद्धि हो, वह इष्ट
वस्तु है।
6. इष्टफलसिद्धि- इष्टफलसिद्धिरभिमतार्थनिष्पत्तिः ऐहलौकिकी, यथोपगृहीतस्य चित्तस्वास्थ्यं भवति तस्माञ्चोपादेयप्रवृत्तिः ।
- योगशास्त्र तथा इष्टफलसिद्धिः = अविरोधिफलनिष्पत्तिः, अतो हीच्छाविधाताभावेन सौमनस्य, तत उपादेयादरः
न त्वयमन्यत्रानिवृत्तौत्सुक्यस्य, इत्ययमपि विद्वज्जनवादः = धर्म की वृद्धि में अविरोधी ऐसे सांसारिक फल की निष्पत्ति इष्टफलसिद्धि है।
- ललितविस्तरा