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जयवीयराय सूत्र (प्रार्थना सूत्र)
२०९ अब जिस परमात्मा के शासन से यह सब प्राप्त होता है, उस परमात्मा के शासन के प्रति सद्भाव व्यक्त करते हुए साधक कहता है -
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं, सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् - सर्व मंगलों में मंगलरूप, सब कल्याणों का कारण तथा सभी धर्मों में प्रधान ऐसा श्री जिनशासन तीनों लोक में विजयवंत है । _ जैन धर्म सभी मंगल में श्रेष्ठ मंगल13 है क्योंकि, जगत के लौकिक मंगल जीव के लिए कुछ अंश तक ही मंगलरूप बनते हैं । जब कि जैनशासन अर्थात् भगवान की आज्ञारूप लोकोत्तर-भावमंगल सर्व अंश से जीवों के लिए मंगलरूप है । जिस कार्य में भगवान की आज्ञा जुडती है, वह कार्य मंगलरूप बने बिना नहीं रहता और अच्छा भी काम आज्ञा के अभाव में मंगलरूप नहीं बन सकता ।
जैन धर्म सब कल्याण का कारण है । कल्य = सुख; जो सुख दे, वह कल्याण । संसार के सर्वश्रेष्ठ सुख पुण्यानुबंधी पुण्य के उदय से मिलते हैं
और यह पुण्य का बंध परमात्मा की आज्ञा के पालन से होता है । इसलिए अनुत्तर या ग्रैवेयक में प्राप्त होनेवाले दैविक सुख या शालिभद्र जैसे मानवीय सुख और अंत में मोक्ष रूप महासुख की प्राप्ति भी जैनशासन की आराधना से ही होती है, इसलिए जैनशासन सर्वकल्याण का कारण है।
जैन धर्म सभी धर्मों में प्रधान धर्म है क्योंकि - दुनिया में धर्म तो बहुत हैं और वे सभी धर्म दुःखनाश और सुखप्राप्ति के उपाय तो बताते हैं, परन्तु अत्यंत सूक्ष्म तरीके से परिपूर्ण सुख का मार्ग तो जैनशासन ही बता सकता है तथा जैनशासन स्याद्वाद को स्वीकार करता है, इसीलिए सभी धर्मों का समावेश अपने में कर सकता है । जब कि अन्य धर्म वस्तुतत्त्व को एकांत से स्वीकार करते हैं, इसलिए उन धर्मों में दूसरे धर्म का समावेश नहीं हो सकता, अतः जैनधर्म ही सबसे श्रेष्ठ है ।
13. मंगल की व्याख्या नवकार सूत्र' में से देखना ।