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कल्लाण-कंदं सूत्र
सूत्र परिचय
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इस सूत्र की प्रथम गाथा में पाँच जिनेश्वर भगवंतों को भक्तिपूर्वक वंदना की गई है, इसलिए इस सूत्र का दूसरा नाम 'पंच जिनस्तुति ' भी कहलाता है। ये सूत्र चार स्तुति स्वरूप हैं । ऐसी रचना को स्तुति का जोड़ा कहा जाता है । इसकी प्रथम गाथा में अधिकृत जिन की स्तुति ( स्तवना) है । जिस परमात्मा को उद्देश्य बनाकर देववंदन किया जाता हो, उस परमात्मा के गुण की स्तवना अधिकृत जिनस्तवना कहलाती है । परमात्मा के प्रति भक्तिभाव की वृद्धि के लिए चैत्यवंदन में प्रथम 'नमोत्थु णं' सूत्र द्वारा गुणों का स्मरण किया जाता है । उसके बाद उनके वंदन, पूजन, सत्कार आदि से होनेवाले लाभ के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है । उसके बाद विशेष भक्तिभाव से अधिकृत जिन की यह प्रथम स्तुति बोली जाती है ।
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चौबीस तीर्थंकर भगवंत गुणों से समान है इसलिए जैसे अधिकृत जिन उपकारक हैं, वैसे गुण की दृष्टि से चौबीसों जिनेश्वर भी जीवों के लिए उपकारक हैं । अतः अधिकृत जिन की स्तुति करने के बाद, इन चौबीसों जिनों की स्तवना के लिए 'लोगस्स' सूत्र बोलकर कायोत्सर्ग करके चौबीस जिन के गुणगान स्वरूप दूसरी स्तुति बोली जाती है ।