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सूत्र संवेदना - २
मयं जिणाणं सरणं बुहाणं, नमामि निचं तिजग-प्पहाणं ।।३।। कुंदिंदु-गोक्खीर-तुसार-वन्ना(ण्णा), सरोज-हत्था कमले निसन्ना(ण्णा) ।
वाएसिरी पुत्थय-वग्ग-हत्था,
सुहाय सा अम्ह सया पसत्था ।।४।। अन्वयार्थ सहित संस्कृत छाया : . कल्लाणकंदं पढमं, जिणिंदं संतिं, तओ मुणिंदं नेमिजिणं, पयासं पासं, सुगुणिक्कठाणं सिरिवद्धमाणं भत्तीइ वंदे ।।१।। कल्याणकन्दं प्रथम, जिनेन्द्र शान्तिं, ततः मुनीन्द्र नेमिजिनं, प्रकाशं पार्श्व, सुगुणैकस्थानं श्रीवर्धमानं भक्त्या वन्दे ।।१।।
कल्याण के कंद समान प्रथम जिनेश्वर (ऋषभदेव भगवान) को, जिनों में इन्द्र समान श्री शांतिनाथ भगवान को, उसके बाद मुनियों में इन्द्र समान श्री नेमिनाथ भगवान को, प्रकाश करनेवाले श्री पार्श्वनाथ भगवान को (और) उत्तम गुणों के एक स्थानभूत श्री वर्धमान स्वामी को मैं भक्ति से वंदन करता हूँ ।।१।।
अपार-संसार-समुद्द-पारं पत्ता, सुरविंद-वंदा, कल्लाण-वल्लीण विसाल-की सब्वे जिणिंदा सुइक्कसारं सिवं दितु ।।२।। अपार-संसार-समुद्रपारं प्राप्ताः, सुरवृन्दवन्दिताः, कल्याण-वल्लीनां विशालकन्दाः सर्वे जिनेन्द्राः श्रुत्येकसारं शिवं ददतु ।।१।।
अपार संसार समुद्र के पाररूप मोक्ष को जिन्होंने प्राप्त किया है वैसे, देवों के समुदाय से वंदित और कल्याणरूपी वेल के विशाल कंद समान सभी जिनेन्द्र, मुझे श्रुति के एक साररूप शिव (सुख) प्रदान करें ।।२।। निव्वाण-मग्गे वर-जाण-कप्पं, पणासियासेस-कुवाइ-दप्पं, बुहाणं शरणं, तिजग-प्पहाणं जिणाणं मयं निजं नमामि ।।३।।