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सूत्र संवेदना - २
ऐसा जैनशासन जयवंत रहे ! अर्थात् उसकी जय जयकार हो । जैनशासन के प्रति अत्यंत भक्ति को व्यक्त करते हुए अंत में कहते हैं, “ ऐसा जैनशासन अत्यंत विस्तार को प्राप्त करें ! अनेक आत्माओं में यह जैनशासन प्रतिष्ठित हो ! अथवा जिनेश्वर की आज्ञा हमेशा मेरे हृदय में रहें ।" खुद की आत्मा में इस शासन के प्रति राग पैदा हुआ हो, शासन की कल्याणकारिता प्रतिष्ठित हुई हो, वैसी आत्मा ही दूसरे की आत्मा में भी उसकी प्रतिष्ठा चाहती है, तथा जगत् में उसका विस्तार चाहती है ।
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