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सूत्र संवेदना - २
महाराज ने ललित विस्तरा ग्रंथ में विवरण किया है । ये दो गाथाएँ गणधरकृत हैं और बाकी की गाथाएँ पूर्वाचार्यकृत है, जो उचित लगने से इस सूत्र में जोड़ी गई हैं। उनमें पाँच मांग हैं । जिससे कुल-१३ गुणों की प्रार्थना इसमें होती है ।
अंतिम संस्कृत श्लोक लघुशांति-स्तवना तथा बृहच्छांति स्तवन के अंत में भी बोला जाता है तथा मांगलिक प्रसंगों की पूर्णाहूति में भी उसका उपयोग होता है। मूल सूत्र : जय वीयराय ! जग-गुरु !, होउ ममं तुह पभावओ भयवं ।। भव-निव्वेओ, मग्गाणुसारिआ, इट्ठफल-सिद्धी ।।१।। लोग-विरुद्ध-चाओ, गुरुजण-पूआ परत्थकरणं च । सुहगुरु-जोगो, तव्वयण-सेवणा आभवमखंडा ।।२।। वारिज्जइ जइ वि नियाणबंधणं वीयराय ! तुह समये । तह वि मम हुन सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं ।।३।। दुक्ख-क्खओ, कम्म-क्खओ, समाहिमरणं च बोहि-लाभो अ । संपजउ मह एअं, तुह नाह ! पणामकरणेणं ।।४।।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं, सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैन जयति शासनम् ।।५।। पद-२०
संपदा-२० अक्षर-१११ अन्वय सहित संस्कृत छाया और अर्थ :
जय वीयराय ! जग-गुरु !, भयवं ! तुह पभावओ ममं भव-निव्वेओ, मग्गाणुसारिआ, इट्टफल-सिद्धि, लोग-विरूद्धश्चाओ, गुरुजण-पूआ, परत्थकरणं सुहगुरु-जोगो आभवमखण्डा तव्वयणसेवणा च होउ ।।१-२।।
जय वीतराग ! जगद्गुरो ! भगवन् ! तव प्रभावतः मम भव-निर्वेदः, मार्गानुसारिता,