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सूत्र संवेदना - २
__९. देव-गुरु का बहुमान : देव-गुरु की आज्ञा का पालन करना ही वास्तविक देव-गुरु का बहुमान है । देवगुरु की आज्ञा का पालन करते करते आगे बढ़कर भविष्य में उनके जैसे पूर्ण गुण निष्पन्न कर देव-गुरु स्वरूप बन जाना ही उनके प्रति श्रेष्ठ कोटि का बहुमान है । परमात्मा ने स्व में ही देवतत्त्व एवं श्रेष्ठ गुरु तत्त्व को निष्पन्न किया है । इसलिए उनमें उच्च कोटि का देव-गुरू बहुमान है ।
१०. गंभीरता : स्व के गुण एवं पर के दोष को पचाने की शक्ति गंभीरता है । उत्तम पुरुष गुणों के भंडार होते हैं । वे अपने गुणों की प्रशंसा कभी नहीं करते एवं अन्य के अनेक दोषों को देखकर उनके ऊपर घृणा, अप्रीति या द्वेष नहीं करते । अन्य के दोषों को देखकर उनके मुख की रेखाएँ भी नहीं बदलती। भगवान महावीर जन्म से ही तीन ज्ञान के स्वामी थे, तो भी माता-पिता ने जब उनको पाठशाला भेजा, तब मुझे यह सब पता है, वैसा ख्याल भी किसी को न
आ जाए इसकी प्रभु ने सावधानी रखी । अनेक दोष-युक्त संगम के ऊपर द्वेष तो नहीं किया, परन्तु परम करुणासागर हृदयवाले परमात्मा को ऐसे दोषपूर्ण व्यक्ति पर भी दया आई जिससे दोषों को पचाने की गंभीरता घोषित होती है। यह प्रसंग परमात्मा की गंभीरता का सूचक है ।
इन दस गुणों के लिए प्रयत्न करना ही सच्चे अर्थ में परमात्मा को नमस्कार है। इसलिए यह पद बोलते हुए परमात्मा के इन विशिष्ट कोटि के दस गुणों को याद करके बैसे स्वरूप में रहे हुए परमात्मा को बहुमानपूर्वक नमस्कार करते हुए भगवान के पास ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए
“हे नाथ ! अनादिकाल से आप में रहे हुए इन गुणों को आपने पूर्णतया प्रकट किए । आपको किया हुआ यह नमस्कार मुझ में
भी इन गुणहें का विकास करें ।” ऐसी भावना सहित यह पद बोलने से इन गुणों में विघ्न करनेवाले कर्मों का विनाश होता है एवं अपनी आत्मा भी इन गुणों को प्राप्त करने में समर्थ बनती है ।