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जावंत के वि साहू सूत्र
सूत्र परिचय
इस सूत्र में भरत, ऐरवत और महाविदेह क्षेत्र में रहे, तीन दंड से विराम पाए हुए सभी साधु भगवंतों की वंदना की जाती है । इसी कारण इसका दूसरा नाम 'सव्वसाहुवंदण' सूत्र है
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इस सूत्र का उपयोग मुख्य रूप से चैत्यवंदन की क्रिया में और वंदित्तु० की ४५वीं गाथा के रूप में होता है ।
सूत्र
चैत्यवंदन की क्रिया में विशेष प्रकार से अरिहंत के गुणों की स्तवना स्वरूप नमोऽत्थुणं सूत्र बोलने के बाद प्रणिधान मुद्रा में यह सूत्र बोला जाता है ।
श्रेष्ठ कोटि के सभी साधु भगवंतों जैसी निष्कषाय भाव की भक्ति प्रतिपत्ति पूजा' आदि करते है वैसी भक्ति खुद में आए, वैसे भाव के साथ इस सूत्र से सभी साधु भगवंतों को वंदन किया जाता है ।
ऐसे भावपूर्वक, इस सूत्र बोलने से साधक में उत्तम साधुओं की तरह सम्यग् चैत्यवंदन करने का महासामर्थ्य प्रकट होता है । हर एक क्रिया में भगवान की आज्ञा को प्राधान्य देने की वृत्ति बढ़ती है और मुनिभाव के प्रति 1 प्रतिपत्ति पूजा को विशेष समझ के लिए 'भूमिका' को देखे ।