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सूत्र संवेदना - २
ऐसे प्रश्नों के उत्तर रूप नौंवी 'सव्वन्नूणं सव्वदरिसीणं...' ये चार पदों वाली 'प्रधान - गुण अपरिक्षय प्रधान फल प्राप्ति अभय संपदा' वर्णन की गई है । इसके द्वारा प्रभु ने प्राप्त किए हुए गुण कभी नाश होनेवाले नहीं हैं, वे सदैव प्रभु के साथ ही मोक्ष में रहनेवाले हैं एवं वह मोक्ष कैसा है ? उसका सुंदर वर्णन इस संपदा में किया गया है ।
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ललितविस्तरा ग्रंथ में इस सूत्र के यहाँ तक के पदों का विवेचन प्राप्त होता है, इसलिए अंतिम 'जे अ अइया सिद्धा...' गाथा बाद में इस सूत्र में जोड़ी गई होगी, ऐसी प्रचलित मान्यता है ।
चैत्यवंदन एवं प्रतिक्रमण की आवश्यक क्रियाओं में भाव अरिहन्त का स्वरूप उपस्थित करके उनको वन्दन करने के लिए इस सूत्र का प्रयोग होता है ।
मूल सूत्र :
नमोऽत्थु * अरिहंताणं, भगवंताणं । । १ । ।
आइगराणं, तित्थयराणं, सयं - संबुद्धाणं ।।२।। पुरिसुत्तमाणं, पुरिस - सीहाणं, पुरिस - वर- पुण्डरीआणं,
पुरिस - वर - गन्धहत्थीणं ॥३॥ लोगुत्तमाणं, लोग - नाहाणं, लोग-हिआणं, लोग-पईवाणं, लोग पज्जो अगराणं ||४||
अभय-दयाणं, चक्खु दयाणं, मग्ग- दयाणं,
सरण- दयाणं, बोहि-दयाणं ।।५।।
धम्म - दयाणं, धम्म- देसयाणं, धम्म-नायगाणं, धम्म-सौरहीणं, धम्म-वर- चाउरंत - चक्कवट्टीणं ।।६।।
* प्रचलित पाठ नमुत्थुणं होते हुए भी ललितविस्तरा आदि ग्रंथों में 'नमोऽत्थुणं' पाठ होने से यहाँ वह लिखा है ।