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नमोत्थुणं सूत्र
अलावा अंतिम भव में तो तीर्थंकर की आत्मा में इन दस गुणों की पराकाष्ठा प्राप्त होती है । उत्कृष्ट कोटि के ये गुण इनके सिवाय अन्य किसी में संभव नहीं हो सकते ।
इन गुणों के कारण परमात्मा तो उत्तम हैं ही । परमात्मा के ये दस गुण आध्यात्मिक विकास की दस सीढ़ियाँ भी हैं । इसलिए जिनको भी आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति करनी हो, उन्हें अपने जीवन में इन दस गुणों को प्रकट करने एवं विकसित करने का अवश्य प्रयत्न करना चाहिए । उत्तम पुरुष के दस गुण : १. परार्थव्यसनी : परार्थ परोपकार एवं व्यसन आदत ।
अरिहंत की आत्मा परोपकार करती है, इतना ही नहीं, परन्तु परोपकार करने के वे व्यसनी होते हैं । जिस व्यक्ति को जिसकी आदत होती है, वह किए बिना उसे चैन नहीं पड़ता । परमात्मा की आत्मा को भी परोपकार का व्यसन होता है, इसलिए, वे परोपकार के कार्य की खोज में ही रहते हैं; जैसे कि अनेकों का निषेध होने के बावजूद भी अपनी फिक्र किए बिना भगवान श्री महावीर स्वामी चंडकौशिक को प्रतिबोध करने जंगल में गये।
कोमल हृदयवाले व्यक्ति ही परोपकार कर सकते हैं । कठोर हृदयवाले तो स्वार्थ में ही मशगूल रहते हैं । अपने स्वार्थ की खातिर अन्य का क्या होगा, उसका उनको विचार भी नहीं आता । जबकि करुणापूर्ण हृदयवाले अन्य की आवश्यकता, अन्य की मुश्किलों का पहले विचार करते हैं, इसलिए जिनको धर्म करना हो, जिनको आत्मा का आनंद प्राप्त करना हो, उन्हें सर्वप्रथम इस गुण का विकास करना चाहिए ।
२. स्वार्थ गौणता : परमात्मा में स्वार्थ की प्रधानता कभी नहीं होती। परोपकार करनेवाले तो इस जगत में बहुत होते हैं, परन्तु अपना स्वार्थ छोड़कर अपना कार्य छोड़कर भी अन्य के कार्य की तत्परता तो किसी उत्तम पुरुष में ही देखने को मिलती है। शांतिनाथ भगवान के जीव मेघरथ