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जं किंचि सूत्र
सूत्र परिचय :
परमतारक श्रीगणधर भगवंतों द्वारा रचित इस सूत्र में सभी तीर्थों को वंदन किया जाता है, इसलिए इसका दूसरा नाम “तीर्थंवंदना" सूत्र है । आत्मा जिसके आलंबन से इस भयानक संसार सागर से तैर सके, उसे तीर्थ कहते हैं । निश्चयनय से तो आत्मा अपने ही प्रयत्न से संसार सागर तैरती है, तो भी तीर्थ और जिनबिंब संसार सागर तैरने का एक प्रबल आलंबन हैं। इसलिए उन्हें तीर्थ कहते हैं ।
आज तक अनंत आत्माएँ ऐसे तीर्थादि के सुंदरतम आलंबन को प्राप्त करके संसार सागर को तैर चुकी हैं । वर्तमान में भी ऐसे सुंदर आलंबनों को स्पर्श कर कितनी आत्माएँ आत्मकल्याण के मार्ग में निरंतर आगे बढ़ रही हैं । वैसे ही भविष्य में भी इन तीर्थों और जिनबिंबों के आलंबन को प्राप्त कर अनंत आत्माओं का निस्तार होनेवाला है । इस विषम संसार का पार प्राप्त करने के लिए इस सूत्र में सभी तीर्थों को वंदन किया गया है ।
ये तारनेवाले तीर्थ दो प्रकार के हैं । १. स्थावर तीर्थ, २. जंगम तीर्थ । शत्रुजय आदि तीर्थस्थान स्थिर हैं, इसलिए वे स्थावर तीर्थ कहलाते हैं । अनंत महात्माओं ने इस अति पवित्र भूमि पर अपना परम कल्याण किया