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सूत्र संवेदना - २
उचित प्रवृत्ति करनेवाले के पाँच लक्षण :
१. लोकप्रियता :
छोटे-बड़े सभी के साथ उचित व्यवहार करनेवालों को सभी चाहते हैं । उसकी उपस्थिति सभी को आनंददायक लगती है । इसीलिए औचित्य पालन सब गुणों में श्रेष्ठ माना गया है । औचित्यपालक जीव ही लोकप्रिय बन सकता है ।
औचित्यये विजानन्ति, सर्वकार्येषु सिद्धिदम् । सर्वप्रियंकरा ये च, ते नरा विरला जने ।।
- योगसार - ५-१० अर्थ : सभी कार्य में सिद्धि प्रदान करवाने वाले जो औचित्य को जानते हैं और जो सबका प्रिय करनेवाले हैं, ऐसे मनुष्य इस लोक में विरल (थोड़े) ही होते हैं ।
औचित्यं परमं बन्धुरौचित्यं परमं सुखम् । धर्मादिमलमौचित्य-मौचित्यं जनमान्यता ।।
- योगसार - ५-११ अर्थ : औचित्य श्रेष्ठ (गुण) है, औचित्य श्रेष्ठ सुख है । धर्म का मूल औचित्य है और औचित्य ही लोकमान्यता प्राप्त करवाता है । २. अनिंदित क्रिया :..
औचित्य को सम्यग् प्रकार से जाननेवाली आत्मा लोक में निंदा का कारण बनें, वैसी हिंसा, परस्त्रीगमनादि प्रवृत्ति कभी नहीं करती । ३. संकट में धैर्य :
अपने औचित्य/को जाननेवाले ही सैकड़ों विघ्नों या संकट आने पर भी मन में धीरज रख सकते हैं और प्रतिकूलता में भी मन प्रसन्न रख सकते हैं। विघ्न आने पर भी वे अपने कर्तव्य या धर्म से लेश मात्र भी विचलित नहीं होते । धीरज खोकर विह्वल हो जाना, एक अनुचित प्रवृत्ति है और