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सूत्र संवेदना - २ संसार में संपत्ति दो प्रकार की होती है - भौतिक और आध्यात्मिक । भौतिक संपत्ति की पराकाष्ठा देवलोक में देवेन्द्र की अवस्था में और मनुष्यलोक में चक्रवर्ती की अवस्था में प्राप्त होती है और आध्यात्मिक सुख की पराकाष्ठा मोक्ष में मिलती है । ये दोनों प्रकार की संपत्ति परमात्मा की भक्ति करनेवालों को ही मिलती है । परमात्मा की भक्ति के प्रभाव से ही ऐसे पुण्य का बंध होता है, जिसके कारण आत्मा देव, देवेन्द्र, नरेन्द्र, और चक्रवर्ती पद को प्राप्त कर सकती है और सर्वश्रेष्ठ परमात्मा की भक्ति के प्रभाव से ही असंग दशा को प्राप्त करके साधक सभी कर्मों का क्षय करके मोक्ष के महासुख को भी पा सकता है । परमात्मा की भक्ति से यह सब संपत्ति मिलती है, इसीलिए परमात्मा को सर्व संपत्ति का कारण कहा गया है। यह पद बोलते हुए सोचना चाहिए कि,
“मुझे सुख देनेवाली बाह्य या अभ्यंतर संपत्ति इस प्रभु की सेवा से ही मिलनेवाली है, इसलिए अब मुझे तुच्छ संपत्ति के लिए यहाँ-वहाँ भटकना बंद करके श्रेष्ठ संपत्ति के स्वामी और उसे प्रदान करने में समर्थ प्रभु की भक्ति में ही लीन बनना
चाहिए ।” स भवतु सततं वः श्रेयसे शांतिनाथ : वे शांतिनाथ भगवान सदैव तुम्हारे श्रेय के लिए हों ! *
ऊपर जिन पाँच विशेषणों द्वारा शांतिनाथ भगवान की स्तवना की, वे शांतिनाथ भगवान (स्तुति करने वाले का) कल्याण करें !!
शांतिनाथ भावान के जो विशेषण बताये गये हैं, उसी स्वरूप से परमात्मा का स्मरण किया जाए तो सहजता से प्रभु के प्रति आदर और बहुमान भाव प्रकट होता है । जीवन की आवश्यक सामान्य वस्तु देनेवाले व्यक्ति पर भी सज्जन व्यक्ति को सद्भाव हुए बिना नहीं रहता, तो जो सब