________________
भूमिका
में पड़ने से सीखा हुआ या पुस्तक में से अपने आप पढ़ा हुआ और पाठ के बदलाव वाला नहीं होना चाहिए ।
ऐसे १७ विशेषणयुक्त सूत्र का उच्चारण करना चाहिए । चैत्यवंदन के सूत्रों को पढ़ने की विधि :
चैत्यवंदन के सूत्र के प्रत्येक पद का अर्थ करने से पहले, शास्त्र में विहित छ : लक्षण और सात कारण जान लेने चाहिए। इन छ: प्रकारों को ध्यान में रखे बिना किसी भी सूत्र के पद का अर्थ घटन समीचीन नहीं हो सकता ।
१. संहिता : पद का स्पष्ट उच्चारण, संहिता है । संस्कृत-प्राकृत भाषा में बने सूत्र के एक-एक शब्द को उदात्त, अनुदात्त, स्वरित आदि यथा योग्य प्रकार से बोलना होता है । उसे बोलते समय कोई दोष न लगे, उसका ध्यान रखकर बोलना, यही संहिता है । यह सूत्र कैसे बोलना चाहिए, यह गुरुमुख से जानना जरूरी है । विनयपूर्वक गुरु से जानकर अगर उसी प्रकार से सूत्र बोला जाए तो पद बोलनेवाले और सुननेवाले को श्रवणकाल में ही पद का अर्थ स्पष्ट होने लगता है ।
२. पद : जिस सूत्र की व्याख्या करनी हो, उसके एक-एक पद को अलग करना पद है । जैसे कि, नमोऽत्थुणं अरिहंताणं' का अर्थ करते समय 'नमो, इत्थु, णं, अरिहंताणं' ऐसे प्रत्येक पद अलग करना पद है।
३. पदार्थ : अलग किए हुए प्रत्येक पद के अर्थ का सम्यक् चिन्तन करना पदार्थ है, जैसे कि 'नमो' अर्थात् 'नमस्कार', 'अत्थु' याने 'हो' इत्यादि ।
४. पद विग्रह : पद में यदि कोई सामासिक पद हो, तो उस समास का विग्रह करना - सामासिक पद को अलग करना; पद विग्रह है ।
५. चालना : जिज्ञासा वृत्ति से प्रश्न करना चालना है । ६. प्रत्यवस्थान : प्रश्न के सचोट समाधान करके पद का तात्पर्यार्थ जानना प्रत्यवस्थान है ।