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प्रथमोऽधिकारः
संसार की शान्ति करने बाले, विश्वसेन से उत्पन्न चक्रधारी मृगचिह्न शान्तिनाथ संसार के द्वारा वन्दनीय है ।। १० ॥
कुन्थु आदि जीवों के प्रति दयाभाव से युक्त, हृदय में करुणा से युनत, धर्मचक्र से युक्त कुन्थुनाथ की (मैं) सदा बन्दना करता हूँ ॥ ११ ॥
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूपी रत्नत्रय से युक्त, सेवकों के सदा हितैषी, रत्नत्रय के दाता अरनाथ को मैं चन्दना करता
कर्म के जोतने में मल्ल मल्लि को तथा मुनिसुव्रत की मैं स्तुति करता हूँ। भुक्ति और मुक्ति के दायक श्रीजिन नमीश (नमिनाथ) को में नमस्कार करता हूँ ॥ १३ ॥
केवलज्ञानरूपी नेत्र वाले नेमिनाथ को मैं अत्यधिक रूप से नमस्कार जन्ता हूँ। सीहिमा के समाधी पाईनाथ की मैं बन्दना करता हूँ ॥१४॥ - वीर, महावीर, वर्द्धमान महति, महावीर आदि नाम वाले सन्मति को स्तुति करता हूँ ॥ १५ ॥
शोभा से युक्त अथवा केवलज्ञानरूपी लक्ष्मी से युक्त, केवलज्ञानरूप सम्पत्ति वाले तीनों कालों में उत्पन्न ये जिनाधीश मेरी सब शान्ति के लिए होवे ॥ १६ ।।
जिनके स्मरण मात्र से समस्त सिद्धि उत्पन्न हो जाती है, ऐसे तीनों लोकों के शिस्तर पर स्थित सिद्धों की मैं सदा स्तुति करता हूँ ॥ १७ ॥
तीनों लोकों के द्वारा मान्य, सन्माता के समान सुखप्रद जिनेन्द्र भगवान् के मुख कमल से उत्पन्न सरस्वती की स्तुति करता हूँ ॥ १८ ॥
प्रातःकाल में कमलिनी के समान जिसके प्रसाद से सज्जनों की बुद्धि नित्य विस्तृत होती है, उस जिनवाणी की स्तुति करता हूँ ।। १९ । ___ मुणरूपी रत्नों की खान, श्रुत के सागर, संसार रूपी समुद्र के तारक गौतमादि गणधरों को नमस्कार करता है ।। २० ।।
कवित्वरूपी कमलिनी के समूह को जाग्रत करने के लिए सूर्य के समान, महिमा के निवास स्थान कुन्दकुन्द नामक मुनीन्द्र को मैं नमस्कार करता हूँ ।। २१ ॥
जिन भगवान के द्वारा कथित सात तत्वों के अर्थ के कर्ता अर्थात् तत्वार्थसूत्र के कर्ता कवीश्वर उमास्वामी मुझे नित्य ज्ञानरूपी सम्पत्ति प्रदान करें ।। २२ ।।