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दशमोऽधिकारः
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उसे देखने की उत्सुक वे गृहकार्य छोड़कर काम से विह्वल होकर पद" पद पर लड़खड़ाने लगीं ॥। २७ ॥
कोई कोई परस्पर 'अहो रूपम्' इस प्रकार रूप के विषय में कहने लगीं। जिस प्रकार भ्रमरियाँ कमलों के समूह के ऊपर दौड़ती हैं, उसी प्रकार प्रमोदपूर्वक दौड़ने लगीं ॥ २८ ॥
कोई नारी सखी से बोली- हे प्रिये ! सुनो। मनोरमा नारी धन्य है, जिसके द्वारा यह प्रसन्नतापूर्वक सेवन किया गया ॥ २९ ॥
कोई बोली - यह सुदर्शन नामक महाबुद्धिमान्, जगन्मान्य राजश्रेष्ठी है, जिसके शरीर का आलिंगन लक्ष्मी करती है ॥ ३० ॥
जिसके द्वारा वह अत्यधिक उन्मत्त कपिल की प्रिया ब्राह्मणी वचित की गई। जिसने काम से दुःखी राजा की स्त्री का त्याग कर दिया ॥ ३१ ॥
यह वह स्वामी हैं, जो कल्याणप्रद जैनी दीक्षा लेकर महामुनि हो गए | ये बुद्धिमान हैं, पवित्र हैं और शील के सागर हैं ।। ३२ ।।
कोई बोली - महान् आश्चर्य है, जिसने महान् बुद्धिशालिनी, महारूपवती मनोरमा को पुत्र सहित त्याग दिया ॥ ३३ ॥
जिनेन्द्रों के धर्म-कर्म में तत्पर कोई बोली हे सखि ! तुम व्यक्त मेरे वचन को स्थिर मन से सुनो ॥ ३४ ॥
यहाँ पर स्त्रीधन के प्रति राम से अन्धे हैं, भोगों के प्रति जिनकी मन की लालसा लगी हुई है। बुरी दशा वाले, वे जिनेन्द्रोक्त तप रूपी रत्न को कैसे ग्रहण करते हैं ? ॥ ३५ ॥
यह जैनमत में दक्ष है, मोक्षार्थी यह अपनी सम्पदा का त्यागकर घोर तप कर रहा है, भी व्यक्तियों के लिए यह तप दुःसह है ॥ ३६ ॥
कोई बोली - हे भोली-भाली सखी! तुम व्यर्थ हो कटाक्षनिरीक्षण क्यों कर रही हो ? यह मुक्ति रूपी स्त्री से अनुरञ्जित है || ३७ ||
लोक में इसकी जननी धन्य है, जिसने भूतल को पवित्र करने वाले, मुक्तिगामी, दया के सागर मुनि को उत्पन्न किया ॥ ३८ ॥
कोई बोली- इस नगर में वह भव्य श्रेष्ट धन्य है किया के पात्र जिसके घर यह आहार के लिए जा रहा है ।। ३२ ।
जब नरियाँ परम आनन्द से भरी हुई इत्यादिक बोल रही थीं, तब उन्होंने अपने मन में महान आश्चर्य को प्राप्त किया ॥ ४० ॥
तब वहाँ नगर में किसी महान् पुण्योदय से उस मुनि को देखकर कोई घर आए हुए निधान के समान सन्तुष्ट हुआ ॥ ४१ ॥