Book Title: Sudarshan Charitram
Author(s): Vidyanandi, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 211
________________ पशमाधिकार: आज्ञा विचय, अपाय विनय, विपाक विचय और संस्थान विचय इन चार प्रकार का ध्यान स्वर्गादि सुख का साधन है !। १४१ ।। वह मोक्षार्थी नित्य इन चार प्रकार के ध्यानों को करता हुमा संसार के सार स्वरूप छः प्रकार के माभ्यन्तर सत्तपों को करता था ।। १४२ ॥ शुक्लध्यान के चार भेद है, वह साक्षात् मोक्ष का कारण है, संसार भ्रमण को रोकने वाले उसका कथन मैं आगे करूंगा ।। १४३ ॥ इस प्रकार तप करते हुए उन्हें अनेक भव्य लोगों को परम आनन्द देने वाली अनेक प्रकार की ऋद्धियाँ हो गई ।। १४४ ।। कहा भी गया है वृद्धि, तप, विक्रिया, औषधि, मन, वचन और काय इस प्रकार सात ऋद्धियाँ कही गई हैं ।। १४५ ।। महाधीर वे गर्मी के समय पर्वत के ऊपर खड़े होते थे | शीतकाल में बाहर खड़े होते थे और वर्षाकाल में वृक्ष के नीचे खड़े होते थे ॥१४६।। ध्यानी, मौनी, महामना, मुनीश्वर स्वामी महातप करते हुए कर्मों की शक्ति को शिथिल करते थे ।। १४७ ॥ ___इस प्रकार मूल और उत्तर सद्गुणों के निधि, उत्तम रत्नत्रय से मण्डित, निर्मोह, परमार्थ पण्डित वह मुनीश्वर संसाररूपी समुद्र सेतारने में एक मात्र निपुण, स्वर्ग और मोक्ष को देने वाले जिनोक्त तपों का अत्यधिक रूप से नित्य वृद्धि करते हुए किया करते थे ।। १४८ ॥ इस प्रकार पचनमस्कारमाहात्म्य प्रदर्शक मुमुक्ष श्री विद्यानन्दिविरचित सुदर्शनचरित में सुदर्शन का तप ग्रहण मूल तथा उत्तरगुणों के प्रतिपालन का विशेष रूप से वर्णन करने वाला घाम अधिकार समाप्त हुआ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240