Book Title: Sudarshan Charitram
Author(s): Vidyanandi, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 231
________________ द्वादशोऽधिकार: २११ अन्य भी जो महाभव्य संसार के हितकारी इस मन्त्र की प्रोतिपूर्वक आराधना करेगा', वह सुखी होगा ।। ३१ ।। अतः भव्यों को सुख-दुःख में परमेष्ठो के इस मन्त्र की आराधना करना चाहिए। यह सदा सार रूप स्वर्ग और मोक्ष का एकमात्र कारण है ।। ३२॥ रात में, प्रातःकाल, मध्याह्न में मुन्ध्या काल सदा भव्यों को सुखप्रद इस मन्त्र की आराधना करना चाहिए ।। ३३ ।। इस मन्त्रराज के स्मरण मात्र से पृथ्वी पर समस्त विघ्न नष्ट हो जाते हैं, जिस प्रकार सूर्योदय होने पर अन्धकार नष्ट हो जाता है ॥३४॥ जैसे समस्त वृक्षों में कल्पवृक्ष सुशोभित हाता है, उसी प्रकार समस्त मन्त्रों में यह मन्त्रराज सुशोभित होता है ।। ३५ ।। इत्यादिक इस मन्त्र के प्रभाव को सुनकर बुद्धिमानों को समस्त कार्यों में इस मन्त्र का सदा स्मरण करना चाहिए ।। ३६ ।। जिस मन्त्र से यहाँ भन्यों की मनावान्छित सम्पदा, धन, धान्य और रम्य कुल सुनिश्चित होता है ।। ३७ ।। अत्यधिक पुण्य के कारण सुदर्शन जिनके चरित्र को जो पढ़ते हैं, पढ़ाते हैं, लिखाते हैं, लिखते हैं ।। ३८ ।। ___ जो महाभव्य सुनते हैं, बार बार भाते हैं वे देव, देवेन्द्र से संस्तुत महासुख को प्राप्त करते हैं ॥ ३९ ।। श्री गौतम गणीन्द्र के द्वारा कहे हुए इस सच्चरित्र को सुनकर उन्हें नमस्कार कर श्रेणिक राजा सन्तुष्ट हुए ।। ४० ।। __परमानन्द से भरे हुए अन्य बहुत से लोगों के साथ सुधी भावि तीर्थंकर वे रम्य राजगृह में आए ॥ ४१ || गन्धारपुरी के जिन मन्दिर में, जो कि यहाँ छत्र, ध्वजादि से सुशोभित है, अपने परके उपकार के लिए सुदर्शन का पवित्र चरित्र बनाया ॥४२॥ भव्यजनों के द्वारा भावित, उत्तम यह सार रूप चरित्र रत्न प्रसन्नतादायक हो । उत्तम केवलज्ञानी सुदर्शन का यह चारित्र संसाररूपी समुद्र में उत्तम जहाज है ।। ४३ ।। ___ समस्त इन्द्रों के समूह से अचित, भप कमलों के सूर्य, गुणों के निधि, मिथ्यात्वरूपी अन्धकार को नष्ट करने वाले, उत्तम शीलरूपी समुद्र के चन्द्रमा, पवित्र, दोषों के समूह से मुक्त, केवलज्ञानलोचन सुदर्शन यहाँ सज्जनों का सतत मङ्गल करें ।। ४४ ॥

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