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सुदर्शनचरितम् ७. कुसीलपरिभासिए-कुत्रोल परिभाषा का अधिकार-कुशीलादि ५
प्रकार के पाश्वस्थ साधुओं का अधिकार । ८. विरिए-वीर्याधिकार-जीवों की तरतमता से वीर्य का वर्णन करता है। ९. धम्मोय-धर्माधिकार-धर्म और अधर्म के स्वरूप का वर्णन करता है। १०, अम्ग-अग्राधिकार--श्रत के अनपदों का वर्णन करता है। ११. मग्गे-मार्गाधिकार--मोक्ष और स्वर्ग के स्वरूप तथा कारण का वर्णन
करता है। १२. समोवसरणं-समवसरणादिधिकार-२४ तीर्थंकरों के समवशरण का
वर्णन करता है। १३. तिकालगंथहिदे-त्रिकाल ग्रन्थ का अधिकार-त्रिकाल गोचर अशेष
परिग्रह के अशुभ रूप का वर्णन करता है। १४, आदा-आत्माधिकार-जीव के स्वरूप का वर्णन करता है। १५. तदित्यगाथा-तदित्थमायाधिकार-वाद के मार्ग का प्ररूपण करता है। १६. पुण्डरिका-पुण्डरीकाधिकार-मित्रों के स्वादि स्थानों में स्तम्या ___का वर्णन करता है। १७. किरियठाणेय-क्रियास्थानाधिकार-तेरह प्रकार की क्रियाओं के स्थानों
का वर्णन करता है। १८. आहारय परिणामे-आहारक परिणाम का अधिकार, सर्व धान्यों के
रस और वीर्य के विपाक को तथा शरीर में व्याप्त सात साधुओं के
स्वरूप का वर्णन करता है। १९. पच्चकवाण-प्रत्याख्यान का अधिकार-सर्वद्रव्य के विषय से सम्बन्ध
रखने वाली निवृत्तियों का वर्णन करता है। २०. अणगारगुणकित्ति-अनगारगुणकीर्तन का अधिकार-मुनियों के गुण
का वर्णन करता है। २१. सुदा-श्रुताधिकार-श्रुत के फल का वर्णन करता है। २२. णालंदे नालंदाधिकार-ज्योतिषियों के पटल का वर्णन करता है । २३. सुद्दयडज्झागाणि तेवीसं-सूत्रकृत अध्ययन से २३ संख्या वाले हैं।
द्वितीय अंग में श्रुतवर्णन के अधिकार के अन्वर्थ संज्ञा वाले हैं।
चउवीस अरहंत-२४ तीर्थंकर--(१) वृषभदेवजी (२) अजितनाथजी (३) सम्भवनाथजी (४) अभिनन्दनजी (५) सुमतिनाथजी (६) पद्मप्रभूजी (७) सुपार्श्वनाथजी (८) चन्द्रप्रभजी (९) पुष्पदन्तजी (१०) शीतलनाथजी (११) श्रेयांसनाथजी (१२) वासुपूज्यजी (१३) विमलनाथजी (१४) अनन्त