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अष्टमोऽधिकारः
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सत्ताबोस अणगारगुण-२७ प्रकार के अनगार के गुण-१२ भिक्षु की प्रतिमा ( ये उत्तम संहनन वाले मुनियों के होती है ) ८ प्रवचन माता { ५ समिति तथा ३ गुप्तियों के पालन में ) क्रोध, मान, माया, लोभ, मोह, राग और द्वेष के अभाव रूप प्रवृत्ति 1 ___ अट्टाबोस आचार कल्प-२८ प्रकार के आचार कल्प अर्थात् मुनि के मूलगुण, ५ महायत, ५ समिति, ५ इंद्रिय निरोध, ६ आवश्यक, ७ विशेषगण ( नग्नत्त्व, अस्नान, भूमि शयन, अतधावन, खड़े होकर आहार लेना, एकभुक्त, केशलोच )।
उनतीस पापात्र प्रमंग-अठारह पुराण, षडंग बालो लोकिक विद्यार्ये और वौद्ध आदि पाँच प्रकार के सिद्धांत ( १८+ ६ + ५ = २२ ) 1 ___ तोस मोहनीय स्थान--क्षेत्र वास्तु आदि बहिरंग परिग्रह से सम्बन्ध रखने वाला क्षेत्र, वास्तु, हिरण, सुवर्ण, द्विपद, चतुष्पद, धन, धान्य, कुप्प, भांड ) १० प्रकार का मोह, अंतरंग मिथ्यावादि से ( मिथ्यात्व, हास्थ, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, क्रोध, माम, माया लोभ, वेद ३ (स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद), राग, द्वेष, मोह रखने के भाव रूप १४ भेद तथा पांच इन्द्रिय और छठे मन से मोह जनित सम्बन्ध रखने के कारण ( १० + १४ + ६ )।
इकत्तीस कर्मविपाक-ज्ञानावरणीय के ५, दर्शनावरणीय के १, वेदनीय के २, मोहनीय के २, आयु के ४, नाम के २ [ शुभ और अशुभ ], गोत्र के २, अंतराय के ५1
बत्तीस जिनोपदेश---छह आवश्यक ( समता, वंदना, स्तुति, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, कायोत्सर्ग ) 1 बारह अंग-आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्त्यंग, ज्ञातृकथांग, उपासकाध्ययनांग, अंतकृद्दशांग, अनुत्तरोपपादिकदशांग, प्रश्नव्याकरणांग, विपाकसूत्रांग, दृष्टिवादांग ।
चौदह पूर्व-~-(१) उत्पाद पूर्व (२) आग्रायणीय पूर्व (३) वीर्यानुवाद (४) अम्ति नास्ति प्रवाद (५) ज्ञानप्रवाद (६) सत्यप्रवाद (७) आरमप्रवाद (4) कर्मप्रवाद (९) प्रत्याख्यान पूर्व (१०) विद्यानुवाद (११) कल्याणवाद (१२) प्राणानुवाद (१३) क्रियाविशाल (१४) लोकबिंदुसार।
तेतीस आसादना-५ प्रकार के अस्तिकाय-(१) जीवास्तिकाय (२) अजीवास्तिकाय (३) धर्मास्तिकाय (४) अधर्मास्तिकाय (५) आकाशास्तिकाय । छह प्रकार के जीवों के निकाय-(१) पृथ्वोकाय (२) जलकाय