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नवमोऽधिकारः
अनन्तर विशिष्टारमा सेठ अपने भवों का विस्तृत वर्णन सुनकर तत्क्षण वैराग्य प्राप्त कर अनुप्रेक्षाओं का विचार करने के लिए उद्यम हो गया ॥१॥
निश्चित रूप संसार में धन-धान्यादिक सब नष्ट होने वाला है। बिजली के समान समस्त सम्प्रदायें चंचल हैं ॥ २ ॥
कष्ट है, पुत्र, मित्र, स्त्री आदि सज्जन बन्धुओं का समूह तथा समस्त विषय आधे ही क्षण में विनष्ट हो जाते हैं ।। ३ ।।
हाथ में आया हुआ रूप, सौभाग्य, सौन्दर्य, यौवन अथवा बन, हाथी, घोड़ा, रथ, सेवकों का समूह (सब) मेघ और नदी के पूर के समान चंचल है ।। ४ ।। ___ इन्द्रधनुष के समान लक्ष्मी पुण्ययोग से उत्पन्न होतो है । उस पुण्य के क्षत्र हो जाने पर वह लक्ष्मी विनष्ट हो जाती है, किसी के द्वारा भी स्थिर नहीं होती है ।। ५ ॥ __ चक्रीपना, वासुदेवपना, शक्रपना, धरणेन्द्र ये सब शाश्वत नहीं हैं, क्षद्र जन्तुओं की तो बात ही क्या है ?। ६ ॥
मायामय शरत्कालीन मेघ जिस प्रकार वायु के द्वारा बिनष्ट हो जाता है, उसी प्रकार अपनी आयु का क्षय होने पर सर्वदा पोषित काय नष्ट हो जाती है ।। ७ ।।
जो घर स्वर्ण आदि भोगोपभोग की बस्तुयें हैं. वे कालाग्नि की राख के समान सब ओर से नाश होने वाली हैं ॥ ८॥
अन्य भी जो पदार्थ हैं, वे आधे क्षण में ही देखते देखते नष्ट हो जाते हैं । अतः अपनी सिजि के लिए बुद्धिमान की निर्ममत्व का चिन्तन करना चाहिए ॥ ९॥
इति अध्रुव अनुप्रेक्षा इस संसार में समस्त प्राणियों का मरण के क्षण माता, पिता, बहिन, भाई अथवा मित्र कुछ भी शरण नहीं है ।। १० ।। __ स्वर्ग जिसका दुर्ग है, देव सेवक हैं, उत्कट शस्त्र वन है, जिसका हाथी ऐरावत है, वह भी काल के द्वारा ले जाया जाता है ।। ११ ।।
नव निधियाँ, चौदह रत्न, छः अंगवाली सेना तथा बन्धु बान्धव (ये सब) चक्रवती के शरण नहीं है ।। १२ ।।