________________
अष्टमोऽधिकार: नाथजी (१५) धर्मनाथजी (१६) शान्तिनाथजी (१७) कुन्थुनाथजी (२८) अरहनाथजी (१९) मल्लिनाथजी (२०) मुनिसुव्रतजी (२१) नमिनाथजी (२२) नेमिनाथजो (२३) पार्श्वनाथजी (२४) महाबीरजी । इन २४ तीर्थकर देवों की यथाकाल बंदनादि करना ।
पणवीस भावना-अहिंसावत की ५ भावनायें-(५) कारगुप्ति (२) मनोगुप्ति (३) ईर्यासमिति (४) आदाननिक्षेपण समिति (५) आलोकितपान भोजन। ___ सत्यव्रत की ५ भावनायें-(१) क्रोधप्रत्यास्थान (त्याग ) (२) लोभप्रत्याख्यान (३) भीरुत्त्वप्रत्याख्यान (४) हास्यप्ररपाख्यान (५) अनुवोचि भाषण ( शास्त्र की आज्ञानुसार निर्दोष वचन बोलना )। ___अत्रौर्यव्रत की ५ भाबनायें-(१) शून्यागारखास--पर्वतों को गुफा, वृक्ष की कोटर आदि निर्जन स्थानों में रहना (२) विमोचितावास-दूसरों के द्वारा छोड़े गये स्थानों में निवास करना (३) परोपरोधाकरण-अपने स्थान पर ठहरे हुए दूसरे को नहीं रोकना (४) भैक्ष्यभुद्धि-शास्त्र के अनुसार भिक्षा की शुद्धि रखना (५) सद्धर्माविसंवाद-सहधर्मियों के साथ यह मेरा है, यह तेरा है, ऐसा क्लेश नहीं करना ।
ब्रह्मचर्यबल की पांच भावनाये-(१) स्त्री रागकथा श्रवण का त्याग करना (२) तन्मनोहराङ्ग निरोक्षण त्याग (३) पूर्वरतानुस्मरण त्यागअग्रत अवस्था में भोगे हुए विषयों के स्मरण का त्याग (४) वृष्येष्ट रसत्याग-कामवर्धक गरिष्ठ रसों का त्याग करना (५) अपने शरीर के संस्कारों का त्याग करना।
परिग्रहत्याग व्रत की ५ भावनायें-स्पर्शन आदि पांच इन्द्रियों के इष्ट, अनिष्ट आदि विषयों में क्रम से राग द्वेष का त्याग करना ।।
पणवीस किरिया-२५ क्रिया--(१) सम्यक्त्व क्रिया-सम्यक्त्व वर्धक क्रिया देव, शास्त्र, गुरुओं की भक्ति करना । (२) मिथ्यात्व क्रिया-कुदेव, कुगुरु, कुशास्त्र के पूजा-स्तवनादि रूप मिथ्यात्त्व की क्रिया करना । (३) प्रयोग क्रिया-हाथ-पैर आदि चलाने के भावरूप, इच्छारूप क्रिया । (४) समादान क्रिया-संयमी का असंयम के सम्मुख होना । (५) ईपिथक्रिया-संयम बढ़ाने के लिए साधु जो क्रिया करता है । (६) प्रादोषिकोक्रिया-क्रोध के आवेश से द्वेषादिक रूप वृद्धि करना । (७) कायिकीक्रिया-हाथ से मारना, मुख से गाली देना इत्यादि प्रवृत्ति का भाग । (८) अधिकरणिकी क्रिया-हिंसा के साधनभूत, बन्दुक, छुरी इत्यादि
सु०-१०