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अष्टमोऽधिकारः
पीठ पीछे विपरीत वचन कहना । १२. असमाहिकलहं-दूसरे के आशय को बदल कर अन्य का नाम लेकर झगड़ा पैदा कर देना । १३. झंझा-- बोला झगड़ा के दो ... । ४. सहकरेपटिदा-सब लोगों की आवाज को दबाकर उच्चध्वनि से पढ़ना । १५. एसणासमिदिविना शोधे भोजन करना । १६ सूरयमाणभोजी-१७. गाणगगणिगोबहुत अपराध करनेवाला मुनि एक गण से दूसरे गण में भेज दिया जाता है। १८. सरक्खरावादे-धूल सहित पैरों का जल में प्रवेश करता तथा जल मैं गीले पेर हो जानेपर धूल में प्रवेश करना । १९. अप्पमाणभोजी-- अप्रमाण भोजन करना अर्थात् भूख से ज्यादा भोजन करना । २०. अकालसज्झाओ-अकाल में स्वाध्याय करना ।
इक्कीस सबलक्रियायें-५ प्रकार की रस सम्बन्धी (खट्टा, मोठा, कडुवा, कषायला, चरपरा), ५ प्रकार को वर्ण सम्बन्धी (काला, पीला, लाल, हरा, सफेद), दो प्रकार की वर्ण सम्बन्धी (सुगन्ध, दुर्गन्ध) तथा आठ प्रकार को स्पर्श सम्बन्धी (हल्का, भारी, ठंडा. गरम, रूखा, चिकना, कड़ा, नरम) और २१वीं पहले छोड़े हुए अपने सम्बन्धियों के ऊपर स्नेह सहित क्रिया, जिसका नाम है विरदिजणरागसहिदा ।
बाईस परीषह-क्षुधा, पिपासा, शीत. उज्य, दंशमशक, नाग्न्य, अरति, स्त्री, चर्या, निषद्या, शय्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, रोग तुणस्पर्श, मल, सरकार पुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान, अदर्शन । तेवीस सूत्रकृत अध्ययन१. समए समय अधिकार, अध्ययन काल के प्रतिपादन के द्वार से
त्रिकाल स्वरूप का प्रतिपादन करता है। २. वेदालिझे-बेदालिजाधिकार-तीन वेदों के स्वरूप का प्रतिपादन
करता है। ३. उबसगं-उपसर्ग का अधिकार-४ प्रकार के उपसर्गों का निरूपण
करता है। ४. इत्थिपरिणाम-स्त्री परिणाम-स्त्रियों के स्वभाव का वर्णन करता है 1 ५. णिरयंतर-मरकान्तर अधिकार-नरकादि चतुर्गतियों का वर्णन
करता है। ६. वीरथुदी-वीर स्तुति अधिकार-२४ तीर्थंकरों के गुण का वर्णन
करता है।