Book Title: Sudarshan Charitram
Author(s): Vidyanandi, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 162
________________ सुदर्शनचरितम् शुक कथा ४ अगंधन सर्प कथा ५ हंसथूथबन्धनमोचन कथा) ४. रोहिणो कथा । ५. शिष्य कथा । ६. तुंब-क्रोध से दिये हुए कटुलुम्बी के भोजन करनेवाले मुनि की कथा । ७. संघावे-समुद्रदत्तादि ३२ श्रेष्ठ पुत्रों की कथा जो सभी अतिवृष्टि के होने पर समाधि को धारण कर स्वर्ग को प्राप्त हुए । ८. मादंगिमल्लि-मातंगिल्लि कथा। ६. चंदिम चन्द्रवेध कथा। ७. सावधप-संगर चक्रवतों को कथा । ११. करकण्डु राजा को कथा । १२. तलायः-वृक्ष के एक कोटर में बैठे हुए तपस्वो की कथा । १३. किणे-चावलों के मर्दन में स्थित पुरुष को कथा । १४. सुसुकेपः आराधना ग्रन्थ में कहो हुई शुशुमार सरीवर संबंधी कथा । १५. अवरकंकेअवरकका नामक पत्तन में उत्पन्न होने वाले अंजनचोर की कथा । १६. नंदोफल-अटची में स्थित, बुभुक्षा से पीड़ित धन्वंतरि, विश्वानुलोम और भत्य के द्वारा लाये हुये किंपाक फल को कथा । १७. उदकनाथ कथा । १८. मण्डूक कथा-जाति-स्मरण होनेवाले मेंढक की कथा । १९. पुंडरीगो-पुंडरीक नामक राजपुत्री की कथा । अथवा--- गुणस्थान १४, जीवसमास १५, पर्याप्ति १६, प्राण १७, संज्ञा १८, मार्गणा १२, ये १९ प्रकार के नाथाध्ययन समझने चाहिए । अथवा वातिया कम के क्षय से होनेवाले १० अतिशय तथा ९ प्रकार की लब्धि सम्बन्धी जिनवाणी का यथा समय अध्ययन करना। वीस असमाधिस्थान--- रत्नत्रय का आराधन करते हुए मुनि के वित्त में किसी प्रकार की आकुलता का नहीं होना ही समाधि है और उससे विपरीत 'असमाधि' है, उसके ये २० स्थान है। १. अदिटु २, डबडवचर-ईर्या समिति रहित गमन करना। ३. अपमज्जिद-अप्रमाजित उपकरणादि को ग्रहण करना, रखना, उठाना आदि । ४, रादिणीयपडिहासीरादिणोअ अर्थात् दोक्षादि से जो ज्येष्ठ है उसका अनादर करके कथन करना । ५.---अधिसेज्जासणं-ज्येष्ठ के ऊपर अपनी झापा या अपना आसन करना। ६. क्रोधो-दीक्षा से ज्येष्ठ के वचन पर क्रोध करना । ७. थेर विवादतराएय-दोक्षा से ज्येष्ठ मुनि आदिकों के समय, बीच में प्रविष्ट होकर वार्तालाप करना । ८. उवधाददूसरे का तिरस्कार करके भाषण करना । ९, अणणुवोचि-आमम भाषा का त्याग करके भाषण करना । १०. अधिकरणो-आगम के विरोध से अपनी बुद्धि के द्वारा तत्व का कथन करना । ११. पिट्टिमांसपडिणीगो

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