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सुदर्शनचरितम् भावार्थ-एक-अनाचार परिणाम, दो-रागद्वेष परिणाम, तीन दंड-दृष्ट मन, दृष्ट बचन, दृष्ट काय जीव को दण्ड देते रहते हैं अतः इन्हें दण्ड कहते हैं। तीन गुप्तियाँ-मन गुप्ति, वचन गुप्ति, काय गुप्ति । तीन गारव-ऋद्धि गारव, रस गारव, सात गारव । चार कषाय-क्रोध, मान, माया, लोभ । चार संज्ञा--आहार, भय, मैथुन, परिग्रह। पाँच महावत-अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह । पाँच समितियाँ-ई, भाषा, एवणा, आदाननिक्षेपण, व्युत्सर्गसमिति । छह जीवनिकाय--पृथ्वी, जल,अग्नि, वायु, वनस्पति, अस काय । छह आवश्यक-समता, चतुर्विशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान,
कायोत्सर्ग । सात भय-इहलोक, परलोक, मरण, वेदना, आकस्मिक, अत्राण भय,
अगुप्ति । आठ मद-ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, तप, बल, ऋद्धि, शरीर मद | नव ब्रह्मचर्य गुप्तियाँ-१. तिर्यंच, २. मनुष्य, ३. देवियों में मन, वचन,
काय से विषय का सेवन करना। दस श्रमणधर्म-उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप,
त्याग, आकिंचन, ब्रह्मचर्य । ग्यारह श्रावक प्रतिमायें--दर्शन, प्रत, सामायिक, प्रोषधोपवास, सचित्त
त्याग, रात्रिभुक्ति त्याग/( दिवा मेथुन त्याग ), ब्रह्मचर्य, आरम्भत्याग, परिग्रहत्याग, अनुमति
त्याग, उद्दिष्ट त्यागप्रतिमा। बारह भिक्षु प्रतिमायें-महा सत्त्वशाली मुनि ( उत्तम संहननवाला मुनि ) इस भिक्षु प्रतिमा विधिका अनुष्ठान कर सकता है। इस देश में रहते हुए एक मास के अन्दर अमुक-अमुक दुर्लभ आहार मिलेगा तो ग्रहण करूँगा अन्यथा नहीं, ऐसी प्रतिझा करके उस मास के अन्तिम दिन प्रतिमायोग धारण करता है, यह एक प्रतिमा हुई।
पूर्वोक्त आहार से शतगुणित उत्कृष्ट दुर्लभ ऐसे भिन्न-भिन्न आहार का व्रत ग्रहण करता है यह व्रत दो मास का, तीन का, चार, पाँच, छह और सात मास तक क्रमशः चलता है, प्रत्येक महीने के अन्तिम दिन प्रतिमायोग धारण करता है । ये सात भिक्षु प्रतिमायें हैं ।