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अष्टमोऽधिकारः सात नरकों के दुःखों के समूह का निवारण जानने वालों में जो श्रेष्ठ थे, आठ कर्मों के क्षय में लगे हुए थे, आठ प्रकार के परम् मदों को हरने वाले थे ।। ७२ ।।
नब प्रकार के ब्रह्मचर्य से सम्पन्न थे, नव प्रकार के पदार्थों के ज्ञाता थे, जिनेन्द्र भगवान द्वारा कहे हुए दश धर्मों का जो पालन करना जानते थे ।। ७३ ।।
शास्त्रोक्त ग्यारह प्रकार की प्रतिमाओं के प्रतिपादक थे, कहे हुए बारह तप के भार को उठाने के नायक थे ।। ७४ ।।
बारह प्रकार की व्यक्त अनुप्रेक्षाओं के चिन्तन करने में लगे रहते थे, तेरह प्रकार के जिनेन्द्र कथित सुन्दर चारित्र से मण्हित थे ।। ५ ।। ___ चौदह गुणस्थानों के विषय में विचार करने में उनका मन लगा रहता था। वे पन्द्रह प्रकार के प्रमादों से रहित और गुणों के समुद्र थे ।। ७६ ।।
ये षोडश कारण भावनाओं के भाव को जानने वाले थे और सत्रह प्रकार के असंयमों से सदा रहित थे ।। ७७ ।।
वे अठारह प्रकार के असम्पराय को जानते थे और करुणा के समुद्र थे। उन्नीस प्रकार के कहे गए नाथ के अध्ययन से युक्त थे ।। ७८ ।।
कहे गए बीस असमाधिस्थान मे रहित थे और कहे गए इक्कीस सबलों के विचारक थे ।। ७९ ।।
बाईस प्रकार के मुनिकथित परोषहों को जीतने में समर्थ थे और जिनकथित तेईस प्रकार के श्रुतध्यान में लगे हुए थे ।। ८० ॥
चौबोस तीर्थ करों को साररूप सेवा से युक्त थे । पच्चीस भावनाओं के आराधक थे और विश्व वन्दित थे ।। ८१ ॥
धर्म की सम्पत्तिस्वरूप पच्चीस क्रियाओं के ज्ञाता थे और छब्बीस क्षमाओं के ज्ञाता थे, नय कोविद थे ।। ८२ ।।
सत्ताईस प्रकार के मुनि के गुणों से युक्त और गुणों के आलय थे। साररूप प्रसिद्ध २८ मूलगुणों से युक्त थे ।। ८३ ।।
उन्तीस प्रकार के कहे गए पाप के प्रति आसक्ति का क्षय करने वाले थे। कहे गए तीस मोहनीय कर्म के भेदों के उत्कृष्ट भेदक थे ।। ८४ ।।
इकातीस संख्या में कहे गए कर्म के परिपाक को जानने वाले थे। वीतराग भगवान के बत्तीस उपदेशों में उन्होंने निश्चय किया था ॥ ८५ ॥ __ वे तेतीस प्रकार आसादनाओं के क्षय कारक थे और चौंतीस अतिशयों को सम्पत्ति को दिखलाने वाले थे ।। ८६ ।।